गुरुवार, 15 जुलाई 2010

गीत: ....करो आचमन. संजीव 'सलिल'

गीत:
....करो आचमन.
संजीव 'सलिल'
*
abstract_377.jpg


*
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन .
*
जीव सभ्यता ने ध्वनियों को
जब पहचाना
चेतनता ने भाव प्रगट कर
जुड़ना जाना.

भावों ने हरकर अभाव हर
सचमुच माना-
मिलने-जुलने से नव रचना
करना ठाना.

ध्वनि-अंकन हित अक्षर आये
शब्द बनाये
मानव ने नित कर नव चिंतन.

भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन .
*
सलिला की कलकलकल सुनकर
मन हर्षाया.
सांय-सांय सुन पवन झकोरों की
उठ धाया.

चमक दामिनी की जब देखी, तब
भय खाया. 
संगी पा, अपनी-उसकी कह-सुन
हर्षाया.

हुआ अचंभित, विस्मित, चिंतित,
कभी प्रफुल्लित
और कभी उन्मन अभिव्यंजन.

भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन .
*
कितने पकडे, कितने छूटे
शब्द कहाँ-कब?
कितने सिरजे, कितने लूटे
भाव बता रब.

अपना कौन?, पराया किसको
कहो कहें अब?
आये-गए कहाँ से कितने
जो बोलें लब.

थाती, परिपाटी, परंपरा
कुछ भी बोलो
पर पालो सबसे अपनापन.
भाषा तो प्रवहित सलिला है
आओ! तट पर,
अवगाहो या करो आचमन .
* * *
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

7 टिप्‍पणियां:

  1. हृदय सलिला सी प्रवाहित हुई यह रचना
    बहुत सुन्दर



    M VERMA

    जवाब देंहटाएं
  2. ( swamee shree param chetana nand ji ✆
    विवरण दिखाएँ १५ जुलाई (1 दिन पहले)

    नमस्कार , धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर गीत .........



    Archana

    जवाब देंहटाएं
  4. नमन है । धन्यवाद।



    निर्मला कपिला

    जवाब देंहटाएं
  5. priy salil ji
    namaskar
    ek bahut hi sundar kavita ke liye bahut sari badhai sweekar kare khub swasth rahen aur khub likhen
    kusum

    जवाब देंहटाएं
  6. थाती, परिपाटी, परंपरा
    कुछ भी बोलो
    पर पालो सबसे अपनापन.
    भाषा तो प्रवहित सलिला है
    आओ! तट पर,
    अवगाहो या करो आचमन .

    सलिल जी, बहुत सुन्दर गीत है। बधाई।
    सन्तोष कुमार सिंह

    जवाब देंहटाएं
  7. आ० सलिल जी,
    भाषा के उदगम और उसके रूप को निखारता अति सुन्दर
    गीत की प्रस्तुति का आभारी हूँ | आपकी लेखनी को नमन !
    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं