मुक्तिका:
मानव विषमय...
संजीव 'सलिल'
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मानव विषमय करे दंभ भी.
देख करे विस्मय भुजंग भी..
अपनी कटती देख तंग पर.
काटे औरों की पतंग ही..
उड़ता रंग पोल खुलती तो
होली खेले विहँस रंग की..
सत्ता पर बैठी माया से
बेहतर लगते हैं मलंग जी.
होड़ लगी फैशन करने की
'ही' ज्यादा या अधिक नंग 'शी'..
महलों में तन उज्जवल देखे
लेकिन मन पर लगी जंग थी..
पानी खोकर पूजें उसको-
जिसने पल में 'सलिल' गंग पी..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
- waah salil ji kammal ki rachana likhi hai .. bahut badhaayi...10:58 pm
जवाब देंहटाएं- paa pragya se sarahana 'salil' ho gaya dhanya.
जवाब देंहटाएंkaheen n pragya se nikat paya koee anya..