बुधवार, 19 मई 2010

नवगीत: मुँह में नहीं जुबान...... --संजीव 'सलिल'

नवगीत:

संजीव वर्मा 'सलिल'


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मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
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शांति-शिष्टता,
धैर्य-भद्रता,
जीवट की पहचान.
शांत सतह के
नीचे हलचल,
मचल रहे अरमान.

श्वेत-शयन लख
यह मत समझो
रंगों से अनजान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
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ऊपर-नीचे
सब जानें पर
ऊँच-नीच से दूर.
दिक्-दिगंत पर
नजर जमाये
आशान्वित भरपूर.

मुस्कानों से
'सलिल' न होगा
पीड़ा का अनुमान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*
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उत्तर का
प्रत्युत्तर देना 
बहुत सहज आसान.
कह न अनर्गल
मौन साधना
क्या जानें नादान?

जो सचमुच
है बड़ा, 'सलिल' वह
नहीं दिखता शान.
मौन देखकर
यह मत समझो
मुँह में नहीं जुबान...
*






ले-दे बढ़ते,
ऊपर चढ़ते
पा लेते है जीत.
मिला ताल से
ताल  सुनते
निज हित का संगीत.
स्वार्थ मित्र,
सर्वार्थ शत्रु कह
लिखें कर्म उन्वान...
*
संबंधों को
अनुबंधों में
बाँध भुनाते रीत.
नेह भाव
निस्वार्थ मनोहर,
ठोकर दें बन मीत.
सत्य न बिसरा
पछतायेगा
'सलिल' समय बलवान...
***
Acharya Sanjiv सलिल / http://divyanarmada.blogspot.com

6 टिप्‍पणियां:

  1. Shah Nawaz :

    दिल को छू जाने वाली, एक बेहतरीन रचना. बहुत खूब!



    Shah Nawaz

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  2. kunwarji's :

    खतरनाक है जी.....

    क्या प्यार से समझाया है...

    जवाब देंहटाएं
  3. sangeeta swarup :

    सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. रंजना :

    अद्वितीय रचना...सदैव की भांति....

    बहुत आनंद आया पढ़कर...आभार..

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