जीवन की
जय बोल,
धरा का दर्द
तनिक सुन...
तपता सूरज
आँख दिखाता,
जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी
अधिक हुई है,
नेह गल रहा.
हिम्मत
तनिक न हार-
नए सपने
फिर से बुन...
निशा उषा
संध्या को छलता
सुख का चंदा.
हँसता है पर
काम किसी के
आये न बन्दा...
सब अपने
में लीन,
तुझे प्यारी
अपनी धुन...
महाकाल के
हाथ जिंदगी
यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही
साँसों का
मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर,
रहे न हावी
कर कुछ
सुन-गुन...
* * *
Amar Jyoti ekavita
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
ahutee@gmail.com
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी,
मनुष्य को कर्तव्य का बोध कराता सुन्दर गीत
के लिये साधुवाद |
कमल
आ० आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंमनुष्य को कर्तव्य का बोध कराता सुन्दर गीत
के लिये साधुवाद |
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंkanhaiyakrishna@hotmail.com
जवाब देंहटाएंवाह-वाह आचार्य जी
-कृष्ण कन्हैया
आदरणीय आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंअच्छा नवगीत है
बधाई!
सादर
अमित
रचनाधर्मिता (http://amitabhald.blogspot.com)
Mob: +919450408917
योगेश स्वप्न
जवाब देंहटाएंati uttam/ati sunder.