शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

तेवरी: हुए प्यास से सब बेहाल. --संजीव 'सलिल'

तेवरी:

संजीव 'सलिल'


हुए प्यास से सब बेहाल.
सूखे कुएँ नदी सर ताल..

गौ माता को दिया निकाल.
श्वान रहे गोदी में पाल..

चमक-दमक ही हुई वरेण्य.
त्याज्य सादगी की है चाल..

शंकाएँ लीलें विश्वास.
नचा रहे नातों के व्याल..

कमियाँ दूर करेगा कौन?
बने बहाने हैं जब ढाल..

सुन न सके मौन कभी आप.
बजा रहे आज व्यर्थ गाल..

उत्तर मिलते नहीं 'सलिल'.
अनसुलझे नित नए सवाल..

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6 टिप्‍पणियां:

  1. गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' …रविवार, जनवरी 10, 2010 6:04:00 pm

    aapke kafia kee ridam wah subhan allaah

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  2. स्वामी भविष्य वक्तानंद …रविवार, जनवरी 10, 2010 6:04:00 pm

    बच्चा कभी पधारो हमरे ब्लॉग पे

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  3. बढ़िया प्रवाहमय गीत!!

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  4. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' …रविवार, जनवरी 10, 2010 6:06:00 pm

    सुन्दर गीत!

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  5. निर्मला कपिला …रविवार, जनवरी 10, 2010 6:07:00 pm

    वाह!

    सुन्दर गीत, बधाई सलिल जी को, नमन उनकी कलम को.

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  6. नमन सभी को दे रहे, जो मुझको उत्साह.
    गुण ग्राहकता को नमन, दिल से रही सराह..

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