शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

नवगीत: गीत का बनकर / विषय जाड़ा -संजीव 'सलिल'

नवगीत:

संजीव 'सलिल'

गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...
कोहरे से
गले मिलते भाव.
निर्मला हैं
बिम्ब के
नव ताव..
शिल्प पर शैदा
हुई रजनी-
रवि विमल
सम्मान करता है...

गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...

फूल-पत्तों पर
जमी है ओस.
घास पाले को
रही है कोस.
हौसला सज्जन
झुकाए सिर-
मानसी का
मान करता है...

गीत का बनकर
विषय जाड़ा
नियति पर
अभिमान करता है...

नमन पूनम को
करे गिरि-व्योम.
शारदा निर्मल,
निनादित ॐ.
नर्मदा का ओज
देख मनोज-
'सलिल' संग
गुणगान करता है...

गीत का बनकर
विषय जाड़ा
खुदी पर
अभिमान करता है...
******

7 टिप्‍पणियां:

  1. Udan Tashtari :

    उम्दा गीत..एक नई सी धारा.

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  2. गिरीश पंकज :

    har baar ki tarah nav alavan. badhai.

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  3. रावेंद्रकुमार रवि ...शनिवार, जनवरी 16, 2010 6:48:00 pm

    वाह, आचार्य जी!

    आपने तो कमाल कर दिया!

    आपका ऐसा आशीष पाकर हम सब धन्य हो गए!

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  4. बहुत खूब मज़ा आया।

    यह संवदेनशील जुड़ाव आदरणीय है।

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  5. आचार्य जी !

    आपके इन सुंदर आशीर्वचनों से वे धन्य हुए जिनके नाम इस रचना में हैं।

    काश, मैंने भी अपनी रचना भेजी होती तो मेरा भी नाम यहाँ होता... :(

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  6. गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' …रविवार, जनवरी 17, 2010 12:37:00 am

    sach sameer bhai (udan tashtaree)se sahamat hoon

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