स्मृति दीर्घा:
संजीव 'सलिल'
*
स्मृतियों के वातायन से, झाँक रहे हैं लोग...
*
पाला-पोसा खड़ा कर दिया, बिदा हो गए मौन.
मुझमें छिपे हुए हुए है, जैसे भोजन में हो नौन..
चाहा रोक न पाया उनको, खोया है दुर्योग...
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ठोंक-ठोंक कर खोट निकली, बना दिया इंसान.
शत वन्दन उनको, दी सीख 'न कर मूरख अभिमान'.
पत्थर परस करे पारस का, सुखमय है संयोग...
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टाँग मार कर कभी गिराया, छुरा पीठ में भोंक.
जिनने अपना धर्म निभाया, उन्नति पथ को रोक.
उन का आभारी, बचाव के सीखे तभी प्रयोग...
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मुझ अपूर्ण को पूर्ण बनाने, आई तज घर-द्वार.
कैसे बिसराऊँ मैं उनको, वे मेरी सरकार.
मुझसे मुझको ले मुझको दे, मिटा रहीं हर सोग...
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बिन शर्तों के नाते जोड़े, दिया प्यार निष्काम.
मित्र-सखा मेरे जो उनको सौ-सौ बार सलाम.
दुःख ले, सुख दे, सदा मिटाए मम मानस के रोग...
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ममता-वात्सल्य के पल, दे नव पीढी ने नित्य.
मुझे बताया नव रचना से थका न अभी अनित्य.
'सलिल' अशुभ पर जयी सदा शुभ, दे तू भी निज योग...
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स्मृति-दीर्घा में आ-जाकर, गया पीर सब भूल.
यात्रा पूर्ण, नयी यात्रा में साथ फूल कुछ शूल.
लेकर आया नया साल, मिल इसे लगायें भोग...
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Waah...
जवाब देंहटाएंsansmaran bhi kavitamayi....
Bahut bahut sundar...
नयी यात्रा में साथ कुछ फूल कुछ शूल ....
जवाब देंहटाएंशूलो पर फूलों की खुशबू राज करे ...
मुबारक रहे नया साल ...!!
आपकी स्मृति-दीर्घा को लाँघते हुए कब अपनी दीर्घा में चली गयी, पता ही नहीं चला. बहुत-बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है...
ठोंक-ठोंक कर खोट निकली, बना दिया इंसान.
शत वन्दन उनको, दी सीख 'न कर मूरख अभिमान'.
पत्थर परस करे पारस का, सुखमय है संयोग...
स्मृतियों के वातायन से, झाँक रहे हैं लोग...
पिताकी महिमा जीतनी करो कम है !!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति !!!
bahut sunder rachna.
जवाब देंहटाएंbadhaai.
yadon ka ye silsila hai, waqt ke sath bhi hai, apnon ke sath bhi hai............. bas YADEN hi baki rah jatin hain.
जवाब देंहटाएं'बहुत अच्छी लगी आपकी शैली !
जवाब देंहटाएंनव वर्ष का नव-संकल्प भी अच्छा लगा !!'
बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
जवाब देंहटाएंpratibha_saksena@yahoo.com
जवाब देंहटाएंआ.आचार्य जी ,
आपकी रचनायें ,किसी-न-किसी बहाने बहुत कुछ दे जाती हैं ।
आपके साथ -
(मुझ अपूर्ण को पूर्ण बनाने, आई तज घर-द्वार.
कैसे बिसराऊँ मैं उनको, वे मेरी सरकार.
मुझसे मुझको ले मुझको दे, मिटा रहीं हर सोग...)
इन 'सरकार' को भी मेरा अभिवादन !
-प्रतिभा
shar_j_n ekavita
जवाब देंहटाएंप्रतिभाजी से सहमत!
सादर शार्दुला
ahutee@gmail.com
जवाब देंहटाएंआ० सलिल जी,
आपकी स्मृतियों के वातायन में झांक कर
आनंद की अनुभूति हुई | धन्यवाद !
कमल
धन्यवाद है सभी को,
जवाब देंहटाएंजो पढ़ रहे सराह.
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंPratibha Saksena
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य जी ,
कविता ,उसमें अभिव्यक्त सुन्दर भावना सहित शिरोधार्य ! स्वीकारें मेरा आभार !
कभी शिप्रा-तट वासिनी रही मालवे की पुत्री को नर्मदा-तट का यह निमंत्रण आन्तरिक सुख दे गया । सँजो कर रखे ले रही हूँ । जब भारत आऊँगी तब उस धरती का पावन-स्पर्श पाने की चिर-संचित कामना पूरी करूँगी -श्रेय रहेगा आप और आपकी सरकार को ।
सादर ,
प्रतिभा .
आत्मीय!
जवाब देंहटाएंघर-घरवाली रेवा तट पर.
साली जी हैं क्षिप्रा तीरे.
सेतु बनाये दोनों में जो-
उस प्रतिभा का
शत अभिनन्दन.
अर्पित अक्षत,
रोली-चन्दन..
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
Pratibha Saksena मुझे
जवाब देंहटाएंआचार्य जी ,
बहुत सुन्दर एवं कल्याणकारी संदेश निहित है इस कविता में .हृदयंगम किया ।
आभार लहित ,
प्रतिभा
आ० आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंदोहों में गीत का अभिनव प्रयोग के लिये बधाई !
कमल जी!
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम.
सराहना हेतु आभार.
इस गीत में दोहे का कहीं भी प्रयोग नहीं हुआ है. दोहा १३-११ मात्राओं के दो पदों का छंद है. इस गीत के हर पद में अधिक मात्राएँ हैं दोहा हेतु अनिवार्य गण नियम का पालन भी यहाँ नहीं है.
पाठक चाहें तो मैं दोहा गीत प्रस्तुत करूँ.
एक लेख माला में हर सप्ताह एक नए छंद के अनुशासन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उदाहरण भी दिए जा सकते हैं.
वाह !वाह,वाह !!
जवाब देंहटाएं- प्रतिभा
ahutee@gmail.com
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी,
कविता की विभिन्न विधाओं के सहज व्याकरण की जानकारी हेतु आपके प्रस्ताव का आभारी हूँ |
मेरे विचार से सदस्य आपके मार्गदर्शन से लाभान्वित होंगे | कुछ सीखने में किसीको आपत्ति क्यों होगी | कविता के मंच होने से रचना में सुधार का हर प्रयत्न स्वागत योग्य है | एक साधारण सदस्य के नाते मैं इस सुझाव का अनुमोदन करता हूँ और
आशा है अन्य सदस्य तथा संचालक महोदय भी सहर्ष अनुमति देंगे | गीत, छंद ,दोहा आदि में
मात्राओं का गणित और गिनती किस प्रकार की जाती है इसका ज्ञान प्राप्त करने को उत्सुक हूँ |
सादर
आदरणीय सलिलजी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना. विशेषत:
टाँग मार कर कभी गिराया, छुरा पीठ में भोंक.
जिनने अपना धर्म निभाया, उन्नति पथ को रोक.
उन का आभारी, बचाव के सीखे तभी प्रयोग...
सादर
राकेश
आचार्य सलिल,
जवाब देंहटाएंगाने वाली गीत को पढ़कर हमेशा ही प्रसन्नता होती है .
आपकी रचनाओं में ध्यान आकर्षित करने की विशेषता है.
Your's ,
Achal Verma