गीत
एक कोना कहीं घर में, और होना चाहिए...
*
याद जब आये तुम्हारी, सुरभि-गंधित सुमन-क्यारी.
बने मुझको हौसला दे, क्षुब्ध मन को घोंसला दे.
निराशा में नवाशा की, फसल बोना चाहिए.
एक कोना कहीं घर में, और होना चाहिए...
*
हार का अवसाद हरकर, दे उठा उल्लास भरकर.
बाँह थामे दे सहारा, लगे मंजिल ने पुकारा.
कहे- अवसर सुनहरा, मुझको न खोना चाहिए.
एक कोना कहीं घर में, और होना चाहिए...
*
उषा की लाली में तुमको, चाय की प्याली में तुमको.
देख पाऊँ, लेख पाऊँ, दुपहरी में रेख पाऊँ.
स्वेद की हर बूँद में, टोना सा होना चाहिए.
एक कोना कहीं घर में और होना चाहिए...
*
साँझ के चुप झुटपुटे में, निशा के तम अटपटे में.
पाऊँ यदि एकांत के पल, सुनूँ तेरा हास कलकल.
याद प्रति पल करूँ पर, किंचित न रोना चाहिए.
एक कोना कहीं घर में और होना चाहिए...
*
जहाँ तुमको सुमिर पाऊँ, मौन रह तव गीत गाऊँ.
आरती सुधि की उतारूँ, ह्रदय से तुमको गुहारूँ.
स्वप्न में देखूं तुम्हें वह नींद सोना चाहिए.
एक कोना कहीं घर में और होना चाहिए...
*
बहुत उम्दा गीत रचा है..सबके दिल की बात!
जवाब देंहटाएंप्रेम में लिपटी दिल को छू जाने वाली बार बार गुनगुनाने वाली बहुत सुंदर भाव समेटे हुए अक अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna hai.
जवाब देंहटाएंशानदार गीत. बधाई.
जवाब देंहटाएंशानदार और जानदार कलम से बिखरे आभायुक्त शब्दों में खोने का मन करता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
धन्यवाद और शुभकामनाएं.
बहुत ही बढ़िया रचना है. लगता है हमारे दिल की बात कह दी है आपने इस रचना में. बधाई.
जवाब देंहटाएं"एक कोना कहीं घर में और होना चाहिए...।" संजीव जी इस एक पंक्ति पर ही मै मुग्ध हूँ ।
जवाब देंहटाएंइस रचना को पुन; पढ़ लिआ।
जवाब देंहटाएंहमारे मन की बात को आपने अपने शब्दो मे ढाला है। बधाई।
आ. कमल जी .
जवाब देंहटाएंदेर हो गई है प्रतिक्रिया देने में ,लेकिन सबके विचार पढ़ती रही ।कविता सुन्दर है मार्मिक है सबकी प्रतिक्रियायें संवेदना पूर्ण और उचित हैं ।आ. संजीव जी का प्रत्युत्तर बहुत सही है ।उसके आगे मैं बस यही कहना चाहती हूं -
धार संयम ,
आत्म को यों दीन होने से बचा लो!
आँसुओं के तार अपने में समा कर
रुदन का कोई नया साँचा बना लो !
सार्थक हो जाय स्वर,
अपने स्वयं को और ढालो!
- प्रतिभा
आदरणीय संजीव जी:
जवाब देंहटाएंकमल जी के इस सुन्दर गीत को पढने के बाद आप का गीत एक ताजा हवा की तरह मन को आनंदित कर गया ।
>हार का अवसाद हरकर, दे उठा उल्लास भरकर.
>बाँह थामे दे सहारा, लगे मंजिल ने पुकारा.
>कहे- अवसर सुनहरा, मुझको न खोना चाहिए.
>एक कोना कहीं घर में, और होना चाहिए...
बहुत अच्छा लिखा है आप ने ।
प्रतिक्रिया के रूप में लिखे ऐसे सुन्दर गीतों को पढने के बाद ईकविता की उपयोगिता पर और विश्वास होने लगता है ।
सादर
अनूप
Anoop Bhargava
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