मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी) छंद
संजीव 'सलिल'
भारती की आरती उतारिये 'सलिल' नित, सकल जगत को सतत सिखलाइये.
जनवाणी हिंदी को बनायें जगवाणी हम, भूत अंगरेजी का न शीश पे चढ़ाइये.
बैर ना विरोध किसी बोली से तनिक रखें, पढ़िए हरेक भाषा, मन में बसाइये.
शब्द-ब्रम्ह की सरस साधना करें सफल, छंद गान कर रस-खान बन जाइए.
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bahut sundar.
जवाब देंहटाएंhindi ko maathe ki bindi banaaye
बढ़िया बात...
जवाब देंहटाएंहिन्दी की जय हो
maine pasand kar liyaa,
जवाब देंहटाएंaap bhee click keejiye
http://abebedorespgondufo.blogs.sapo.pt/ said...
जवाब देंहटाएंGood.
Portugal
December 17, 2009 3:40 AM
आदरणीय संजीव जी:
जवाब देंहटाएंछन्द और विशेष रूप से ये पंक्ति अच्छी लगी :
>बैर ना विरोध किसी बोली से तनिक रखें, पढ़िए हरेक भाषा, मन में बसाइये.
सादर स्नेह के साथ
Anoop Bhargava
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आ० आचार्य जी,
जवाब देंहटाएंहिंदी भाषा के उदबोध पर एक सशक्त और संप्रेषणीय छंद की प्रस्तुति पर साधुवाद ! " यो गेयः स पद्यः " सूत्र का मैं भी समर्थक हूँ पर मात्राओं की व्याकरण से अनभिज्ञ हूँ | केवल लय का ही पुजारी हूँ |
सादर
कमल