मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी) छंद: भारती की आरती --संजीव 'सलिल'

मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी) छंद

संजीव 'सलिल'

भारती की आरती उतारिये 'सलिल' नित, सकल जगत को सतत सिखलाइये.
जनवाणी हिंदी को बनायें जगवाणी हम, भूत अंगरेजी का न शीश पे चढ़ाइये.
बैर ना विरोध किसी बोली से तनिक रखें, पढ़िए हरेक भाषा, मन में बसाइये.
शब्द-ब्रम्ह की सरस साधना करें सफल, छंद गान कर रस-खान बन जाइए.

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6 टिप्‍पणियां:

  1. महेन्द्र मिश्र ...गुरुवार, दिसंबर 17, 2009 9:30:00 am

    bahut sundar.
    hindi ko maathe ki bindi banaaye

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  2. विनोद कुमार पांडेय ...गुरुवार, दिसंबर 17, 2009 9:31:00 am

    बढ़िया बात...

    हिन्दी की जय हो

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  3. गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' ...गुरुवार, दिसंबर 17, 2009 9:31:00 am

    maine pasand kar liyaa,

    aap bhee click keejiye

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  4. http://abebedorespgondufo.blogs.sapo.pt/ said...
    Good.
    Portugal

    December 17, 2009 3:40 AM

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  5. आदरणीय संजीव जी:

    छन्द और विशेष रूप से ये पंक्ति अच्छी लगी :

    >बैर ना विरोध किसी बोली से तनिक रखें, पढ़िए हरेक भाषा, मन में बसाइये.

    सादर स्नेह के साथ

    Anoop Bhargava
    732-407-5788 (Cell)
    609-275-1968 (Home)
    732-420-3047 (Work)

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  6. आ० आचार्य जी,
    हिंदी भाषा के उदबोध पर एक सशक्त और संप्रेषणीय छंद की प्रस्तुति पर साधुवाद ! " यो गेयः स पद्यः " सूत्र का मैं भी समर्थक हूँ पर मात्राओं की व्याकरण से अनभिज्ञ हूँ | केवल लय का ही पुजारी हूँ |
    सादर
    कमल

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