शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

नवगीत: हिंद और/ हिंदी की जय हो... संजीव 'सलिल'

नवगीत:

संजीव 'सलिल'

हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
जनगण-मन की
अभिलाषा है.
हिंदी भावी
जगभाषा है.
शत-शत रूप
देश में प्रचलित.
बोल हो रहा
जन-जन प्रमुदित.
ईर्ष्या, डाह, बैर
मत बोलो.
गर्व सहित
बोलो निर्भय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
ध्वनि विज्ञानं
समाहित इसमें.
जन-अनुभूति
प्रवाहित इसमें.
श्रुति-स्मृति की
गहे विरासत.
अलंकार, रस,
छंद, सुभाषित.
नेह-प्रेम का
अमृत घोलो.
शब्द-शक्तिमय
वाक् अजय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
शब्द-सम्पदा
तत्सम-तद्भव.
भाव-व्यंजना
अद्भुत-अभिनव.
कारक-कर्तामय
जनवाणी.
कर्म-क्रिया कर
हो कल्याणी.
जो भी बोलो
पहले तौलो.
जगवाणी बोलो
रसमय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
**************

6 टिप्‍पणियां:

  1. महफूज़ अली ने आपकी पोस्ट " नवगीत: हिंद और हिंदी की जय हो... संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    bahut achchi lagi yeh kavita.....

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  2. Udan Tashtari ने आपकी पोस्ट " नवगीत: हिंद और हिंदी की जय हो... संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    बहुत बढ़िया!!

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  3. आशीष कुमार 'अंशु'गुरुवार, नवंबर 19, 2009 12:12:00 pm

    आशीष कुमार 'अंशु' ...
    Sundar hai...

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  4. गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल'गुरुवार, नवंबर 19, 2009 12:13:00 pm

    बेहतरीन रचना

    आपका आभार

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  5. जबलपुर-ब्रिगेड ...गुरुवार, नवंबर 19, 2009 12:14:00 pm

    संजीव जी की लेखनी की कोई सानी नहीं

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  6. मैं बस यही कहूँगी बहुत ही अच्छी रचना है !!!

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