नवगीत:
संजीव 'सलिल'
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
जनगण-मन की
अभिलाषा है.
हिंदी भावी
जगभाषा है.
शत-शत रूप
देश में प्रचलित.
बोल हो रहा
जन-जन प्रमुदित.
ईर्ष्या, डाह, बैर
मत बोलो.
गर्व सहित
बोलो निर्भय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
ध्वनि विज्ञानं
समाहित इसमें.
जन-अनुभूति
प्रवाहित इसमें.
श्रुति-स्मृति की
गहे विरासत.
अलंकार, रस,
छंद, सुभाषित.
नेह-प्रेम का
अमृत घोलो.
शब्द-शक्तिमय
वाक् अजय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
*
शब्द-सम्पदा
तत्सम-तद्भव.
भाव-व्यंजना
अद्भुत-अभिनव.
कारक-कर्तामय
जनवाणी.
कर्म-क्रिया कर
हो कल्याणी.
जो भी बोलो
पहले तौलो.
जगवाणी बोलो
रसमय हो.
हिंद और
हिंदी की जय हो...
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महफूज़ अली ने आपकी पोस्ट " नवगीत: हिंद और हिंदी की जय हो... संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi yeh kavita.....
Udan Tashtari ने आपकी पोस्ट " नवगीत: हिंद और हिंदी की जय हो... संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!!
आशीष कुमार 'अंशु' ...
जवाब देंहटाएंSundar hai...
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआपका आभार
संजीव जी की लेखनी की कोई सानी नहीं
जवाब देंहटाएंमैं बस यही कहूँगी बहुत ही अच्छी रचना है !!!
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