बुधवार, 5 अगस्त 2009

मुक्तक, पवन मुवार ''प्रणय''

मुक्तक


पवन मुवार ''प्रणय'', मैनपुरी


बंद पलकों में जब भी निहारोगे तुम.

राग सा सप्त स्वर में उतारोगे तुम.

गीत बनकर ह्रदय में समां जाऊँगा-

प्यार में प्यार से जब पुकारोगे तुम.

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प्रेम के गूढ़ प्रश्नों के हल के लिये.

पास आने तो दो एक पल के लिये.

कल पता क्या नदी के किनारे हों हम-

प्रश्न बहता रहे अपने हल के लिये.

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इतना रोओ भी न तुम किसी के लिये.

आँख गीली न हो फिर उसी के लिये.

जब मिलेगी ख़ुशी तब भी छलकेंगी ये-

ज़ज्ब थोड़े से कर लो ख़ुशी के लिये.

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हम फिरे दर-ब-दर हमसफर के लिये.

अनछुई ले नजर उस नजर के लिये.

अक आँसू तन्हा सा मिला प्यार में-

बस गया आँख में उम्र भर के लिये.

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दूर तक है अँधेरा सा छाया हुआ.

ज़र्रा-ज़र्रा लहू में नहाया हुआ.

भीख माँगे है बेबस खड़ी ज़िन्दगी-

फेंक दो अब तो खंजर उठाया हुआ.

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