सोमवार, 24 अगस्त 2009

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात


ज्वलंत प्रश्न.....जिन्ना पर लिखी उनकी किताब जसवंत के निष्कासन की अहम वजह बनी क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात है ....?

मेरा अपना मानना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इतिहास से खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नही होनी चाहिये ...फिर जसवंत जी ने तो जाने क्यो गड़े मुर्दे उखाड़कर ..शायद स्वयं की मुसलमानो के प्रति लिबरल छबि बनाकर अगले प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के लिये देश द्रोह जैसा कुछ कर डाला है ..क्या नही ..आप क्या सोचते है ?????

3 टिप्‍पणियां:

  1. इतिहास क्या होता है?

    गत घटनाओं का लेखा-जोखा...जो लिखनेवाले के दृष्टिकोण पर निर्भर होता है...जसवंत सिंह का अपना दृष्टिकोण है जिससे आप सहमत नहीं हैं इसमें राष्ट्र कहाँ है?, फिर राष्ट्र से द्रोह कैसे?

    यदि जसवंत सिंह के साथ सहमति रखनेवाले असहमति रखनेवालों को यही विशेषण दें तो?

    बेहतर है मुद्दे की पड़ताल की जाये...आक्षेप न लगाये जाएँ. जिन्ना हमारे लिए खलनायक हो सकते हैं किन्तु पाकिस्तानियों के राष्ट्र-नायक हैं. यदि हम चाहते हैं की भारत के राष्ट्र-नायक का पाकिस्तान सम्मान करे तो हमें भी पाकिस्तान के राष्ट्र-नायक का सम्मान करना होगा. यह राजनय है.

    वैचारिक प्रतिबद्धताएँ भिन्न होने से इतिहास का मूल्यांकन भिन्न हो सकता है, समग्र सच तभी सामने आएगा जब हर जानकार अपना मत सामने लायेगा. जसवंत सिंह के साथ निष्कासन दलीय मुद्दा है पर यह कार्यवाही सैद्धांतिक रूप से गलत और संवैधानिक अधिकार का हनन करनेवाली है.

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  2. आपने सही मुद्दे पर बात की है ,इस पर गहन विचार की जरुरत है.
    हिन्दीकुंज

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  3. कुमारेन्द्र सिंह सेंगरशुक्रवार, अगस्त 28, 2009 8:20:00 pm

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    देश में जसवंत सिंह के कारण फिर जिन्ना भूत सामने आ खड़ा हुआ। विवाद मचाने वालों ने विवाद मचाया, कार्यवाही करने वालों ने कार्यवाही की पर आम आदमी को क्या मिला?
    दाल आज भी पहुँच के बाहर है, जान पर खतरे अभी भी हैं, महिलायें घर बाहर असुरक्षित अभी भी हैं फिर इस प्रकरण से बदला क्या है?
    सोचिए कि आज के परिप्रेक्ष्य में सबसे आवश्यक क्या है? आम आदमी को सुरक्षा, रोजी, रोटी, मकान, वस्त्र या फिर देश विभाजन के कारक और कारण, परमाणु समझौते की असलियत, अन्तरराष्ट्रीय कानून पर विचार?
    समझ नहीं आता कि देश में समय समय पर विवादों का साया क्यों आ जाता है? क्या यह सब एक पब्लिसिटी स्टंट से अधिक कुछ नहीं है? क्या बेकार हो चुके, हाशिये पर आ चुके लोगों के पुनः चर्चा में आने का हथियार है?
    कुछ तो है जो हमें दिखाई, सुनाई नहीं दे रहा है। कुछ तो है जिसे हम देखना, सुनना नहीं चाह रहे हैं।
    चलिए छोड़िये रोटी की चिन्ता, छोड़िये दाल की बातें, भूल जाइये अपनी जानमाल की सुरक्षा, भुला दीजिए कि आपकी बेटी अभी भी घर से बाहर है आखिर हमें चिन्ता करनी है कि देश को किसने बँटने दिया। हमें चिन्ता इस बात की हो कि जिन्ना सेकुलर थे या नहीं। हमें सोचना चाहिए कि गाँधी जी की भूमिका देश के बँटवारे में कैसी थी।
    आखिर इसी सबसे तो आम आदमी को दो वक्त की रोटी मिलेगी। इसी से तो देश का आर्थिक विकास होगा। इन्हीं सबसे तो देश मंदी और मँहगाई के दौर से बाहर आयेगा। इन्हीं पर तो चिन्तन करके हम आतंकवाद पर काबू कर लेंगे।
    आखिर देश के एक बड़े नेता की किताब है, बड़े नेता का चिन्तन है तो हमें इस पर सोचना ही होगा। चलिए हम तैयार हैं इन सब बातों पर सोचने और विचार करने के लिए क्या आप तैयार हैं?

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