प्रो सी बी श्रीवास्तव
OB11, विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर जबलपुर
गोकुल तुम्हें बुला रहा हे कृष्ण कन्हैया ।
वन वन भटक रही हैं ब्रजभूमि की गैया ।
दिन इतने बुरे आये कि चारा भी नही है
इनको भी तो देखो जरा हे धेनू चरैया ।।१।।
करती हे याद देवी माँ रोज तुम्हारी
यमुना का तट औ. गोपियाँ सारी ।
गई सुख धार यमुना कि उजडा है वृन्दावन
रोती तुम्हारी याद में नित यशोदा मैया ।।२।।
रहे गाँव वे , न लोग वे , न नेह भरे मन
बदले से है घर द्वार , सभी खेत , नदी , वन।
जहाँ दूध की नदियाँ थीं , वहाँ अब है वारूणी
देखो तो अपने देश को बंशी के बजैया ।।३।।
जनमन न रहा वैसा , न वैसा है आचरण
बदला सभी वातावरण , सारा रहन सहन ।
भारत तुम्हारे युग का न भारत है अब कहीं
हर ओर प्रदूषण की लहर आई कन्हैया ।।४।।
आकर के एक बार निहारो तो दशा को
बिगड़ी को बनाने की जरा नाथ दया हो ।
मन मे तो अभी भी तुम्हारे युग की ललक है
पर तेज विदेशी हवा मे बह रही नैया ।।५।।
Vivek ji,
जवाब देंहटाएंAchchi Rachana Hai, Bhaw Bhi achchey hain. Meri oor se badhaee sweekar karin.
D. Shareef
Karachi
बहुत अच्छी रचनाओं हेतु आभार. ऐसी रचनाएँ आगे भी प्रस्तुत कर सकें तो आभार होगा.
जवाब देंहटाएंnice
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