सोमवार, 3 अगस्त 2009

बाल दोहे: बर्फ बीच पेंग्विन बसी

बाल दोहे:

पेंग्विन सबकी मीत है

आचार्य संजीव 'सलिल'

बर्फ बीच पेंग्विन बसी, नाचे फैला पंख.
करे हर्ष-ध्वनि इस तरह, मानो गूँजे शंख..

लम्बी एक कतार में, खड़ी पढाती पाठ.
अनुशासन में जो रहे, होते उसके ठाठ..

श्वेत-श्याम बाँकी छटा, सबका मन ले मोह.
शांति इन्हें प्रिय, कभी भी, करें न किंचित क्रोध.

यह पानी में कूदकर, करने लगी किलोल.
वह जल में डुबकी लगा, नाप रही भू-गोल..

हिम शिखरों से कूदकर, मौज कर रही एक.
दूजी सबसे कह रही, खोना नहीं विवेक..

आँखें मूँदे यह अचल, जैसे ज्ञानी संत.
बिन बोले ही बोलती, नहीं द्वेष में तंत..

माँ बच्चे को चोंच में, खिला रही आहार.
हमने भी माँ से 'सलिल',पाया केवल प्यार..

पेंग्विन सबकी मीत है, गाओ इसके गीत.
हिल-मिलकर रहना सदा,'सलिल'सिखाती रीत..

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8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना है पेंग्विन मुझे बड़ी अच्छी लगती है ! जब भी देखता हूँ लगता है बहुत ही भोली और शर्मीली है | जैसे भगवान् ने मानव बनाते बनाते जानवर और मानव के बिच का जिव बना दिया हो |

    July 24, 2009 10:45 AM

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  2. बहुत सुंदर रचना है !!

    July 24, 2009 10:51 AM

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  3. नीरज गोस्वामी …सोमवार, अगस्त 03, 2009 10:53:00 pm

    लम्बी एक कतार में, खड़ी पढाती पाठ.
    अनुशासन में जो रहे, होते उसके ठाठ..
    Waah Salil Ji Waah

    July 24, 2009 12:54 PM

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  4. बहुत अच्‍छे दोहे।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    July 25, 2009 5:55 PM

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  5. वाह वाह पेंग्विन ;;;;
    सबको सिखाओ अनुशासन
    ताक धिना धिन

    July 26, 2009 3:54 PM

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  6. Mujhe aapke likhe yeh dohe bhot aache lage
    sach mei penguin ki kya tasvir pesh ki hai aapne.
    bhot sunder

    July 27, 2009 2:46 PM

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