मैं पिताजी प्रो.चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध जी की पहली रचना की खोज में था .... पुलिस पत्रिका वर्ष ३ अंक ११ नवम्बर १९४९ के पृष्ठ १ पर प्रकाशित यह रचना मिली ...पत्रिका के कोनो में दीमक लग रही थी ...शुक्रिया ब्क्स्लग की ताकत का कि अब यह रचना चिर सुसंचित रह सकेगी ....
आरक्षी दल के सिपाही से
चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध
सिपाही तुम स्वदेश की शान !
तुम पर आधारित जनता के अरमान
शांति व्यवस्था और सुरक्षा का तुम पर भार पड़ा है
तुम खुद को छोटा मत समझो , छोटे का अधिकार बड़ा है
तुम से है समाज संचालित , तुम समाज के प्राण
सिपाही तुम स्वदेश की शान !
बूंद बूंद जल के मिलने से सागर का निर्माण हुआ है
सच्चे सदा सिपाही दल से ही स्वदेश बलवान हुआ है
कर्म निष्ठ बन , धर्म निष्ठ बन राखो अपनी आन
सिपाही तुम स्वदेश की शान !
सत्य धैर्य औ नीति निपुणता सदा तुम्हारा प् दिखलायें
किन्तु शत्रु के लिये निठुरता पौरुष तुम में आश्रय पाये
भारत के विद्रोही जग में रह न सकें सप्राण
सिपाही तुम स्वदेश की शान !
वर्षों का फैला अंधियारा मानस मंदिर से मिट जाये
मातृ प्रेम का विषद दीप अब जन मन में प्रकाश फैलाये
मां का मान न घटने पाये , हो चाहे बलिदान
सिपाही तुम स्वदेश की शान !
बस अपने कर्तव्य प् के तुम निधड़क राही बन जाओ
देख हठीली विपदाओ को भी न तनिक तुम घबराओ
कर दो अंकित मेरु शिखर पर भी निज चरण निशान
सिपाही तुम स्वदेश की शान !
राष्ट्र ध्वजा लहरा लहरा कर तुम से रोज कहा करती है
शाम सबेरे बिगुल तुम्हारी रोज पुकार यही करती है
कदम कदम बढ़े चलो भारत के अभिमान
सिपाही तुम स्वदेश की शान !
आदरणीय विदग्ध जी की प्रथम कविता पढ़कर धन्य हुआ. इसके साथ विदग्ध जी का चित्र तथा पत्रिका में छपी कविता का छाया चित्र लगा दें तो सोने में सुहागा हो. आपको धन्यवाद विवेक जी!
जवाब देंहटाएंराष्ट्र ध्वजा लहरा लहरा कर तुम से रोज कहा करती है
जवाब देंहटाएंशाम सबेरे बिगुल तुम्हारी रोज पुकार यही करती है
कदम कदम बढ़े चलो भारत के अभिमान
सिपाही तुम स्वदेश की शान !
....Bahut sundar bhavon se rachi kavita..badhai.
"युवा" ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
sipahee wakayee desh ki shan hi naheen jaan bhi hain.
जवाब देंहटाएंdeshbhakti ka prerak geet.
जवाब देंहटाएंnice one.
जवाब देंहटाएं