मंगलवार, 9 जून 2009

दोहा-गीत संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग:

दोहा-गीत

-संजीव 'सलिल',संपादक दिव्य नर्मदा

तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.
स्नेह-सलिल सिंचन करें,
महकें सुमन अनेक...
*
मन-वृन्दावन में बसे,
कोशिश का घनश्याम.
तन बरसाना राधिका,
पाले कशिश अनाम..
प्रेम-ग्रंथ के पढ़ सकें,
ढाई अक्षर नेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.....
*
कंस प्रदूषण का करें,
मिलकर सब जन अंत.
मुक्त कराएँ उन्हें जो
सत्ता पीड़ित संत..
सुख-दुःख में जागृत रहे-
निर्मल बुद्धि-विवेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.
*
तरु कदम्ब विस्तार है,
संबंधों का मीत.
पुलक सुवासित हरितिमा,
सृजती जीवन-रीत..
ध्वंस-नाश का पथ सकें,
निर्माणों से छेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो लगायें एक.....
*********************

8 टिप्‍पणियां:

  1. abhishek shrivastav 'kinshu', raipurबुधवार, जून 10, 2009 8:06:00 am

    parya-chetana jagata saras geet. sadhuvaad.

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  2. ramesh shrivastav 'chatak', seoniबुधवार, जून 10, 2009 8:07:00 am

    purani yaad taza ho gayee. dhanyavad. subhadra ji ka kadamb yaad aa gaya.

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  3. आशुतोष सक्सेना, बेंगलुरुबुधवार, जून 10, 2009 8:33:00 am

    कदम्ब जैसे भूले-बिसरे वृक्ष को प्रतिक बनाकर अपने सार्थक सन्देश दिया है.

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  4. dohe kee chhandas maryada ke palan ke sath geet ke gun-dharmon ka samavesh vastutah kathin hai. asdhuvad.

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  5. मुकेश कुमार तिवारीबुधवार, जून 10, 2009 10:35:00 pm

    आदरणीय् आचार्य जी,

    आपका इन्दौर आना हुआ यह नईदुनिया में छपी एक ख़बर से ज्ञात हुआ, खेद इस बात का है कि आपसे मुलाकात नही हो पायी।

    मैनें , पहले भी हिन्द-युग्म पर यह कहा है कि मैं एकलव्य की भांति आपका शिष्य हूँ।

    गुरूवर आज पुनि दीन्हें, मशविरा इक नेक
    जनसंख्या को रोककर, पेड़ लगाओ अनेक

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  6. भूले-बिसरे कदम्ब को याद कर आपने सुप्त चेतना को जाग्रत कर दिया.

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