सोमवार, 25 मई 2009

काव्य किरण :

एक शे'र



आचार्य संजीव 'सलिल'



जब तलक जिंदा था, रोटी न मुहैया थी।



मर गया तो तेरही में दावतें हुईं॥



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7 टिप्‍पणियां:

  1. अर्चना श्रीवास्तवसोमवार, मई 25, 2009 4:52:00 pm

    सामाजिक रूढियों पर चोट करती सशक्त लघुकथा.

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  2. Babli ने कहा…
    आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    बहुत बढ़िया लगा! मैं भारतीय हूँ इस बात का मुझे गर्व है!

    Wednesday, May 27, 2009 9:27:00 AM

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