मंगलवार, 26 मई 2009

विरासत: भजन - स्व. शान्ति देवी वर्मा

ठांडे जनक संकुचाएँ

ठांडे जनक संकुचाएँ, राम जी को का देऊँ ?...

हीरा पन्ना नीलम मोती, मूंगा माणिक लाल।

राम जी को का देऊँ ?

रेशम कोसा मखमल मलमल खादी के थान हजार।

राम जी को का देऊँ ?

कुंडल बाजूबंद कमरबंद, मुकुट अंगूठी नौलख हार।

राम जी को का देऊँ ?

स्वर्ण-सिंहासन चांदी का हौदा, हाथीदांत की चौकी।

राम जी को का देऊँ ?

गोटा किनारी, चादर परदे, धोती अंगरखा शाल।

राम जी को का देऊँ ?

काबुली घोडे हाथी गौएँ शुक सारिका रसाल।

राम जी को का देऊँ ?

चंदन पलंग, आबनूस पीढा, शीशम मेज सिंगार।

राम जी को का देऊँ ?

अवधपति कर जोड़ मनाएं, चाहें कन्या चार।

राम जी को का देऊँ ?

'दुल्हन ही सच्चा दहेज़ है, मत दे धन सामान।'

राम जी को का देऊँ ?

राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन, देन बहु विध सम्मान।

राम जी को का देऊँ ?

शुभाशीष दें जनक-सुनयना, 'शान्ति' होंय बलिहार।

राम जी को का देऊँ ?

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4 टिप्‍पणियां:

  1. ye bhajan is patrika ke star ko aur upar kar rahe hain .............. bahut badhiya

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  2. डॉ. प्रार्थना निगम, उज्जैनगुरुवार, मई 28, 2009 9:09:00 pm

    हमारे संस्कृति की पहचान ऐसे गीतों का प्रचालन दिनों-दिन कम होना और पश्चिमी या फिल्मी संगीत पर अधकचरा और भोंडा नृत्य संगीत देखना सजा से कम नहीं.

    लेखिका ने सरस-मधुर गीतों में समूचा भावः-लोक बसा लिया है. उनकी पुण्य-स्मृति को नमन.

    दिव्या नर्मदा परिवार को शुभ कामनाएँ.

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