आम जनता के हक में सदा शूल रहे हैं।
आज गाँधी के अनुयायी फल-फूल रहे हैं॥
सीधे-सादे पेड़ तो हर दिन हैं कट रहे।
आरक्षितों में शूल और बबूल रहे हैं॥
कश्मीर तो भारत के माथे का मुकुट है।
भारत समूचा एक है हम भूल रहे हैं॥
आ गया 'चातक' पुनः चुनाव् का मौसम।
वादों के झूठे झूले सब झूल रहे हैं॥
उस दर पे मेरी गर्दन इसलिए न झुक सकी।
'चातक' की इबादत के कुछ उसूल रहे हैं॥
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यह बात मेरे अपने तजुर्बे में आई है।
साफ़ बात कहने में केवल बुराई है॥
जब एक बनो, नेक बनो तभी हो इन्सां।
सब के लिये रब ने यह दुनिया बनाई है॥
आपस में बाँट लें सभी के सुख-औ'- दुःख को हम।
आपस में बँटोगे तो बहुत ही बुराई है॥
क्यों लड़ते-झगड़ते हो, उलझते हो दोस्तों?
आपस में लड़कर किसने सुख-शान्ति पाई है?
'चातक; की प्यास के लिए, दरिया भी कम रहा।
स्वाति की एक बूँद सदा काम आयी है॥
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