गुरुवार, 28 मई 2009

काव्य-किरण: चुटकी - अमरनाथ




नव काव्य विधा: चुटकी



समयाभाव के इस युग में बिन्दु में सिन्धु समाने का प्रयास सभी करते हैं। शहरे-लखनऊ के वरिष्ठ रचनाकार अभियंता अमरनाथ ने क्षणिकाओं से आगे जाकर कणिकाओं को जन्म दिया है जिन्हें वे 'चुटकी' कहते हैं।



चुटकी काटने की तरह ये चुटकियाँ आनंद और चुभन की मिश्रित अनुभूति कराती हैं। अंगरेजी के paronyms की तरह इसकी दोनों पंक्तियों में एक समान उच्चारण लिए हुए कोई एक शब्द होता है जो भिन्नार्थ के कारण मजा देता है।





गीता



जब से देखा तुझको गीता.



भूल गया मैं पढ़ना गीता..




काले खां



नाम रखा है काले खां



दिल के भी वे काले खां...




दो राह

चले सदा दो राहों पर. .

पर मिले सदा दोराहों पर॥




नाना



नाना चीजें लाते नाना..

कभी पाइनेपिल कभी बनाना..


पालतू

है यह कुत्ता पालतू।

पाल सके तो, पाल तू॥




*********************

2 टिप्‍पणियां: