शुक्रवार, 20 मार्च 2009

ग़ज़ल

डॉ. महेंद्र अग्रवाल, शिवपुरी

मुसीबत पीठ पर कोई लदी वो मुस्कुराता है
उठाकर सर खडी हो त्रासदी वो मुस्कुराता है

विरासत में मिली है शानो-शौकत राजवंशी है
कभी करवट बदलती है सदी वो मुस्कुराता है

महाजन गाँव से आकर शहर में और लापरवाह
उफनती है वहाँ जब भी नदी वो मुस्कुराता है

हमारे बीच का, हमने चुना सरदार अपना ही
कबीले में खिली जब भी बदी वो मुस्कुराता है

शहर जलता रहा फिर भी मगन वो बाँसुरी में था
मुसीबत में अगर हो द्रौपदी वो मुस्कुराता है

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