
गीत
वीर प्रसूता माँ के उदगार
डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, बरेली
चलो, देश के काम आ गया, अपना प्यारा लाल...
जिसकी अर्थी ने जीवन का अर्थ हमें समझाया.
दुनिया के माया-जालों में कभी नहीं उलझाया.
जिसे तिरंगे में पाकर, उन्नत है मेरा भाल....
सीमा के उस प्रहरी ने मातृत्व सफल कर डाला.
मृत्युंजय बनकर जिसने सारा विषाद हर डाला.
अनुरागी नब गया उसी का, निष्ठुर चाहे काल...
बलिदानी सूत एक अकेला, बना मुझे वरदान.
सौंप गया है, भारत माँ को अमृतमय मुस्कान.
और पुत्र ऐसे पाकर हो, माता सदा निहाल...
वीर-प्रसूता रह्हों, सदा जब-जब मैं जीवन पाऊँ.
विदुला और कभी जीजाबाई बनकर हरषाऊँ.
हो बन्दूक खिलौना, उसकी वीरोचित हो चाल...
हर माँ अपने बालक को मानव बनना सिखलाये.
अर्थवान जीवन हो, ऐसा काम देश के आये.
रुद्र और दुर्गा सी सन्तति, करती सदा कमाल...
देश-धर्म पर मिटानेवाले ही जिंदा कहलाते हैं.
चट्टानों औ' गिरिश्रृंगों को, वे पल में दहलाते हैं.
हस शहीद के मेले पर, हृदयों में उठा, उबाल...
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