सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'' संपादक दिव्य नर्मदा.
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम / संजिव्सलिल.ब्लॉग.सीओ.इन / सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

सुनो कहानी चिल्ली की

किसी समय में किसी देश में, एक हुए थे चिल्ली शेख।

सदियाँ गुजर गयीं उन जैसा, दूजा सका न कोई देख।

शोर शरारत नटखटपन के, किस्से कहते लोग अनेक।

कहीं बेवकूफी दिखती है, कहीं झलकता बुद्धि-विवेक।

आओ! सुन किस्सा चिल्ली का, हम अपना मन बहलायें।

'सलिल' न अपना शीश धुनें, कुछ सबक सीख कर मुस्काएं

अफवाहों पर ध्यान न दें

दिन दोपहरी बीच बजरिया, दौड़ रहे थे चिल्ली शेख।

'चल गयी, चल गयी' थे चिल्लाते, लोग चकित थे उनको देख।

रोक रहे सब रुके नहीं थे, पूछे उनसे कैसे?, कौन?

विस्मय शंका भय ने घेरा, बंद दुकानें कर सब मौन।

व्यापारी घबराए पूछें- ' कहाँ चली?, किसने मारी?

कितने मरे बताओ भैया?, किसने की गोलीबारी?'

कौन बताये?, नहीं जानता, कोई कहाँ हुआ है क्या?

पता लगा 'चल गयी' चिल्लाता भगा केवल चिल्ली था।

चिल्ली को सबने जा घेरा, पूछा- 'चल गयी क्यों बोले?'

चिल्ली चुप सकुचाये गुमसुम राज नहीं अपना खोलें।

बार-बार पूछा तो बोले- ' झूठ नहीं सचमुच चल गयी।

बीच बजरिया दिन दोपहरी मेरे ही हाथों चल गयी।

''क्या कहते हो तुमसे चल गयी?, या अल्ला क्या गजब हुआ?'

अब्बा चीखे- 'सिर्फ़ मुसीबत लाता है कमबख्त मुआ।

'चिल्ली चकराए है गडबड, बोले- 'फ़िक्र न आप करें।

चल गयी खोटी आज चवन्नी, यह चिल्लर ले आप धरें।'

बात समझ आए तो सबकी चिंता दूर हुई भारी।

सर धुनते सब वापिस लौटे बात जरा सी दईमारी।

व्यर्थ परेशां हुए आज, अब बिन सच जाने कान न दें।

सबक सिखाया चिल्ली जी ने, अफवाहों पे ध्यान न दें।

******************

1 टिप्पणी: