दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada

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शुक्रवार, 15 मई 2009

कविता: मशीनी जीवन -अवनीश तिवारी

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बैठते-उठते मशीनों के संग, मशीन बन गया हूँ मैं, नैतिक मूल्यों से दूर, निर्जीव, सजीव रह गया हूँ मैं। मस्तिष्क के पुर्जों का जंग, विचारों को कर...
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