दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु
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शुक्रवार, 13 नवंबर 2020
षट्पदी
एक षट्पदी * करे न नर पाणिग्रहण, यदि फैला निज हाथ नारी-माँग न पा सके, प्रिय सिंदूरी साज? प्रिय सिंदूरी साज, न सबला त्याग सकेगी 'अबला' 'बला' बने क्या यह वर-दान मँगेंगी ? करता नर स्वीकार, फजीहत से न डरे नारी कन्यादान, न दे- वरदान नर करे ***
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