सोरठा सलिला
•
सोरठा सलिला
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
•
गुरु
गुरु ही अंतिम आस, अगर अटल विश्वास हो।
गुरु यदि करें प्रयास, हर बाधा हो दूर तब।।
•
लक्षणवत हो नाम, तदनुसार हो आचरण।
गुरु हों कभी न वाम, संभव तब भव-संतरण।।
•
भक्ति अनन्य प्रपत्ति, दे करिए संजीव गुरु!
होगी दूर विपत्ति, भव की अपने आप ही।।
•
जो है जिसका इष्ट, उसको हो स्वीकार्य वह।
मेटे वही अनिष्ट, भजें एक को ही सदा।।
•
जिससे पाई सीख, गुरु उसको ही मानिए।
जो न बताए लीक, वह गुरु हो सकता नहीं।।
•
शिष्य बने भगवान, विश्व मित्र हो यदि गुरु।
करिए गुरु का ध्यान, मर्यादा पर्याय जो।।
•
गुरु निर्मल जल-धार, अमल विमल नर्मदा सम।
गुरु पग-रज सिर धार, भवसागर से सके तर।।
•
हो विंध्याचल सदृश, नभ छू; रोके सूर्य पथ।
समय गुरु-कथा अकथ, कहे देख नत संत-पग।।
•
गुरु गुरुता पर्याय, पाकर तर जाए सलिल।
करे सभी सदुपाय, गुरु-पद-रज पा हो विमल।। ९
•
ब्रह्म
ब्रह्म कील पहचान, माया चक्की-पाट हैं।
दाना जीव समान, बचे कील से यदि जुड़े।
दाना जीव समान, बचे कील से यदि जुड़े।
•
गणपति
गणपति पाते भोज, रानी माता उमा से।
अर्पित भक्ति सरोज, शंभु बसे कैलाश पर।।
•
शारदा
घटे रमा की चाह, चाह शारदा की बढ़े।
गगन न देता छाँह, भले शीश पर जा चढ़े।।
गगन न देता छाँह, भले शीश पर जा चढ़े।।
•
शिव
शिव से सकें न भाग, शिव को पा सकते नहीं।
रहे अटल अनुराग, शिव अंतर्मन में बसे।।
•
शिव हैं आप अनाम, शिव-अनुकंपा नाम दे।।
•
ढँकते सबकी लाज, वृषभ-देव शिव दिगंबर।
पूर्ण करें हर काज, निर्बल के बल शिव-उमा।।
•
बल भी रखना दूर, शिव से छल करना नहीं।
बजा श्वास संतूर, भक्ति करो मन-प्राण से।।
•
तीन लोक के भेद, शिव त्रिनेत्र से देखते।
करते कभी न भेद, असत मिटा, सत बचाते।।
•
नाद ताल सुर थाप, शिव शंकर ओंकार हैं।
शिव ही जापक-जाप, शिव सुमरनी सुमेरु भी।।
•
लय रस छंद सुरीत, अक्षर मुखड़ा अंतरा।।
•
शब्द-कोष शब्दार्थ, आत्म-अर्थ परमार्थ भी।
प्रगट-अर्थ निहितार्थ, शिव ही वेद-पुराण हैं।।
•
मन शिव का कर ध्यान, तन शिव को ही पूजना।
हो जाता भगवान, भिन्न न शिव से जो रहे।।
•
सार शिवा-शिव जान, इस असार संसार में।
शिव रसनिधि रसखान, शिव में हो रसलीन तू।।
•
शिव से सकें न भाग, शिव को पा सकते नहीं।
मिलें अगर अनुराग, शिव अंतर्मन में बसे।।
•
शिव हैं आप अनाम, शिव-अनुकंपा नाम दे।।
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ढँकते सबकी लाज, वृषभ-देव शिव दिगंबर।
पूर्ण करें हर काज, निर्बल के बल शिव बनें।।
•
बल भी रखना दूर, शिव से छल करना नहीं।
बजा श्वास संतूर, भक्ति करो मन-प्राण से।।
•
तीन लोक के भेद, शिव त्रिनेत्र से देखते।
करते कभी न भेद, असत मिटा, सत बचाते।।
•
अर्पित भक्ति सरोज, शंभु बसे कैलाश पर।
गणपति पाते भोज, रानी माता उमा से।।
•
शिव मस्तक पर चंद, पूर्ण न हो पाया कभी।
करते राम अमंद, जोड़ स्वयं के नाम से।।
•
भजें राम शिव नित्य, राम भजें शिव को सतत।
दोनों ईश अनित्य, सलिल करें अभिषेक हँस।।
•
भक्ति अनन्य प्रपत्ति, दे करिए संजीव प्रभु!
होगी दूर विपत्ति, भव की अपने आप ही।। १९
•
राम
बन जाते हैं काम, कोशिश करने से 'सलिल'।
भला करेंगे राम, अनथक करो प्रयास नित।।
•
हुआ राम का नाम, अधिक राम से सहायक।
सुलभ राम का नाम, राम रहे दुर्लभ सदा।।
•
भक्त-अभक्त सदैव, राम-नाम गाते सभी।
वे कहते आ राम, जो करते आराम ही।।
•
शिव मस्तक पर चंद, पूर्ण न हो पाया कभी।
करते राम अमंद, जोड़ स्वयं के नाम से।।
•
भजें राम शिव नित्य, राम भजें शिव को सतत।
दोनों ईश अनित्य, सलिल करें अभिषेक हँस।।
•
मैं मति मूढ़ अजान, राम नाम आधार है।
मिले ज्ञान का दान, व्यर्थ शेष व्यापार है।।
•
भोग भोग मत जीव, भोग भोगता तुझे ही।
करे योग संजीव, अगर राम की भक्ति की।।
•
जिसे नहीं प्रिय राम, वे पुरजन परिजन तजें।
स्वजन संत निष्काम, साथ उन्हीं का नित करें।।
•
भक्त-अभक्त सदैव, राम-नाम गाते सभी।
वे कहते आ राम, जो करते आराम ही।।
•
'विनय पत्रिका' में निहित, दैन्य भाव प्राधान्य है।
'मानस' में है विहित, राम चरित की महत्ता।।
•
जो है जिसका इष्ट, उसको हो स्वीकार्य वह।
मेटे वही अनिष्ट, भजें एक को ही सदा।। ११
•
तुलसी
कभी तुल सकी मीत, तुलसी तुल कर भी नहीं।
तुलसी जीवन-रीत, लसी बसी जन-मन सदा।।
•
'विनय पत्रिका' में निहित, दैन्य भाव प्राधान्य है।
'मानस' में है विहित, राम चरित की महत्ता।।
•
१८-१२-२०२२ जबलपुर
***
कृष्ण कर्म पर्याय
कृष्ण कर्म पर्याय, निष्फल कुछ करते नहीं।
सक्रियता पर्याय, निष्क्रियता वरते नहीं।।
•
अनुपम कौशल कृष्ण, काम करें निष्काम रह।
हुए नहीं वे तृष्ण, थे समान सुख-दुःख उन्हें।।
•
गहो कर्म सन्यास, यही कृष्ण-संदेश है।
हो न मलिन विन्यास, जग-जीवन का तनिक भी।।
•
कृष्ण -राधिका एक, कृष्ण न मिलते कृष्ण भज।
भजों राधिका नेंक, आ जाएँगे कृष्ण खुद।।
•
तहाँ कृष्ण जहँ प्रेम, हो न तनिक भी वासना।
तभी रहेगी क्षेम, जब न वास हो मोह का।।
•
किशन देखता मौन, कितने कहाँ सरोज हैं?
शब्द-वेध कर कौन, बने धंनजय 'सलिल' फिर।।
•
शब्द-वेध कर कौन, बने धंनजय 'सलिल' फिर।।
•
कालिंदी के तीर, लिखा गया इतिहास था।
मन में धरकर धीर, जन-हित साधा कृष्ण ने।।
•
प्रकृति मैया पोस, मारा शोषक कालिया।
सहा इंद्र का रोष, गोवर्धन छिप कान्ह ने।।
•
मिला पूत नहिं एक, बंजर भू सम पूतना।
खोकर चली विवेक, कृष्ण मारने खुद मरी।।
•
जोशीमठ में आज, कान्हा हो जाओ प्रगट।
जन-जीवन की लाज, मात्र तुम्हारे हाथ में।।
•
दोषी शासन-नीति, रही प्रकृति को छेड़ती।
है पाखंडी रीति, घड़ियाली आँसू बहे।।
•
जनता जागे आज, कहें कृष्ण विप्लव करो।
बदल इंद्र का राज, करो प्रकृति से मित्रता।।
•
जपो कृष्ण का नाम, रंजन कर आलोक दें।
श्वास-श्वास बृज-धाम, बाधा-संकट रोक दें।।
•
कृष्ण करें आकृष्ट, दूर न कोई रह सके।
निबल दीन के इष्ट, अकथ कथा को कह सके।।
•
कभी कुवल्यापीड़, क्रश न कृष्ण को कर सके।
वही रहे बेपीड़, जिसे कृष्ण पर क्रश रहे।।
•
उन्हें मानिए एक, कृष्णा-कृष्ण न भिन्न हैं।
जाग्रत रखें विवेक, काम-अकाम अभिन्न हैं।।
•
कृष्ण प्रकृति के दूत, ग्वाल कृषक जमुना सखा।
गोवर्धन गौ पूत, ममता-माखन नित चखा।।
•
करें अशुभ का नाश, कृष्ण सतत बदलाव हैं।
काटें भव-भय पाश, शुभ-सत्कर्म प्रभाव हैं।।
•
नंद-यशोदा लाल, कान्हा जन-मन में बसे।
वेणु करों में थाम, राधा मन मंदिर रहे।।
श्वास-श्वास बृज-धाम, बाधा-संकट रोक दें।।
•
कृष्ण करें आकृष्ट, दूर न कोई रह सके।
निबल दीन के इष्ट, अकथ कथा को कह सके।।
•
कभी कुवल्यापीड़, क्रश न कृष्ण को कर सके।
वही रहे बेपीड़, जिसे कृष्ण पर क्रश रहे।।
•
उन्हें मानिए एक, कृष्णा-कृष्ण न भिन्न हैं।
जाग्रत रखें विवेक, काम-अकाम अभिन्न हैं।।
•
कृष्ण प्रकृति के दूत, ग्वाल कृषक जमुना सखा।
गोवर्धन गौ पूत, ममता-माखन नित चखा।।
•
करें अशुभ का नाश, कृष्ण सतत बदलाव हैं।
काटें भव-भय पाश, शुभ-सत्कर्म प्रभाव हैं।।
•
नंद-यशोदा लाल, कान्हा जन-मन में बसे।
वेणु करों में थाम, राधा मन मंदिर रहे।।
•
जो पूजे तर जाए, द्वादश विग्रह कृष्ण के।
पुनर्जन्म नहिं पाए, मिले कृष्ण में कृष्ण हो।।
•
विग्रह-छाया रूप, राधा रुक्मिणी दो नहीं।
दोनों एक अनूप, जो जाने पा कृष्ण ले।।
•
नहीं आदि; नहिं अंत, कल-अब-कल के भी परे।
कृष्ण; कहें सब संत, कंत सृष्टि के कृष्ण जी।।
•
श्वेत रक्त फिर पीत हों, अंत श्याम श्रीकृष्ण।
भिन्न-अभिन्न प्रतीत हों, हो न कभी संतृष्ण।।
.
भेद दिखे होता नहीं, विधि-हरि-हर त्रय एक हैं।
चित्र गुप्त है त्रयी का, मति-विवेक अरु कर्म ज्यों।।
•
'अ उ म' सह प्रणव मिल, कृष्ण सृष्टि पर्याय।
कृष्णाराधन नहिं जटिल, 'क्लीं' जपे प्रभु पाय।।
•
कृष्ण सुलभ हैं भक्त को, व्यक्ताव्यक्त सुमूर्त हैं।
नयन मूँद कर ध्यान नित, भक्त-हृयदे में मूर्त हैं।।
•
हर अंतर कर दूर, कहें उपनिषद निकट जा।
हरि-दर्शन भरपूर, मन में कर तू तर सके।।
•
विप्र-भोज के बाद ही, सुनें कथा कर ध्यान।
कर्म खरे अनुपम सही, करते सदा सुजान।। २९
•
हिंदी
कंठ करोड़ों वास, हिंदी जगवाणी नमन।
हर मन भरे उजास, हर जन हरि जन हो विहँस।।
•
हिंदी है रसवान, जी भरकर रस-पान कर।
हो रसनिधि रसलीन, बन रसज्ञ रसखान भी।।
•
हिंदी प्राची लाल, कर प्रकाश कहती उठो।
कलरव करे निहाल, नभ नापो आगे बढ़ो।।
•
नेह नर्मदा धार, हिंदी कलकल कर बहे।
बाँटे पाया प्यार, कभी नहीं कुछ भी गहे।।
•
सरला तरला वाक्, बोलें-सुनिए मुग्ध हों।
मौन न रहें अवाक्, गले मिलें मत दग्ध हों।। ५
•
•••
सोरठे गणतंत्र के
जनता हुई प्रसन्न, आज बने गणतंत्र हम।
जन-जन हो संपन्न, भेद-भाव सब दूर हो।
•
यही सफलता-मंत्र, जनसेवी नेता बनें।।
•
होता है अनमोल, लोकतंत्र में लोकमत।
कलम उठाएँ तोल, हानि न करिए देश की।।
•
खुद भोगे अधिकार, तंत्र न जन की पीर हर।
शासन करे विचार, तो जनतंत्र न सफल है।।
•
आन, बान, सम्मान, ध्वजा तिरंगी देश की।
विहँस लुटा दें जान, झुकने कभी न दे 'सलिल'।।
•
पालन करिए नित्य, संविधान को जानकर।
फ़र्ज़ मानिए सत्य, अधिकारों की नींव हैं।।
•
भारतीय हैं एक, जाति-धर्म को भुलाकर।
चलो बनें हम नेक, भाईचारा पालकर।। ७
•••
प्रभु-प्रसाद है प्रेम
•
प्रभु-प्रसाद है प्रेम, प्रेम जगत व्यवहार है।
बिना प्रेम नहिं क्षेम, प्रेम आत्म उद्धार है।।
•
स्वर्ग बने संसार, मिले प्रेम को प्रेम जब।
है संसार असार, मिले प्रेम को प्रेम नहिं।।
•
हो जाता है प्रेम, किया न जाता है कभी।
तभी प्रेम हो क्षेम, स्वार्थ न हो उसमें निहित।।
•
शिव के प्रेमाधीन, उमा अपर्णा हो गई।
जग-पितु हुए अधीन, शिवा जगत जननी हुई।।
•
प्रेम न तनिक मलीन, पुष्प वाटिका साक्ष्य है।
प्रेमी रहे अदीन, मर्यादाएँ मानकर।।
•
पाली पर-संतान, प्रेम यशोदा ने किया।
आभारी भगवान, हुए दिव्य दर्शन दिए।।
•
कोई नहीं मिसाल, श्री राधा के प्रेम की।
खुद ही हुईं निहाल, ईश बनाकर गोप को।।
•
सचमुच ही अनमोल, द्रुपदसुता का प्रेम था।
चीर बढ़ाया कृष्ण ने, सखी-साख अनमोल।।
•
•
प्रभु-प्रसाद है प्रेम, प्रेम जगत व्यवहार है।
बिना प्रेम नहिं क्षेम, प्रेम आत्म उद्धार है।।
•
स्वर्ग बने संसार, मिले प्रेम को प्रेम जब।
है संसार असार, मिले प्रेम को प्रेम नहिं।।
•
हो जाता है प्रेम, किया न जाता है कभी।
तभी प्रेम हो क्षेम, स्वार्थ न हो उसमें निहित।।
•
शिव के प्रेमाधीन, उमा अपर्णा हो गई।
जग-पितु हुए अधीन, शिवा जगत जननी हुई।।
•
प्रेम न तनिक मलीन, पुष्प वाटिका साक्ष्य है।
प्रेमी रहे अदीन, मर्यादाएँ मानकर।।
•
पाली पर-संतान, प्रेम यशोदा ने किया।
आभारी भगवान, हुए दिव्य दर्शन दिए।।
•
कोई नहीं मिसाल, श्री राधा के प्रेम की।
खुद ही हुईं निहाल, ईश बनाकर गोप को।।
•
सचमुच ही अनमोल, द्रुपदसुता का प्रेम था।
चीर बढ़ाया कृष्ण ने, सखी-साख अनमोल।।
•
राधा-मीरावाद, पीर-प्रेम का साथ ही।
ममतामय अनुवाद, सूर-यशोदा पीर का।।
•
सचमुच ही अनमोल, द्रुपदसुता का प्रेम था।
सखी-साख अनमोल, चीर बढ़ाया कृष्ण ने।।
•
बंधु-शत्रु को न्योत, भिन्न प्रेम रुक्मिणी का।
जली प्रेम की ज्योत, खुद को अपहृत कराया।।
•
नित्य प्रेम का पाठ, गुणिजन शिशु को पढ़ाते।
होते उसके ठाठ, सब से मिलता प्रेम नित।।
•

नए कुछ काम, बालक चाहे टालना नित्य।
कहते हो यश-नाम, 'सीखो बच्चे प्रेम से'।।
•

लेता कहीं निहार, हो किशोर जब प्रेम से।
मिले डाँट-फटकार, करते निगरानी स्वजन।।
•

चाहे भरे उड़ान, युवा प्रेम का पाठ पढ़।
'ले लो दोनों जान, खाप कतरती पर- कहे।।'
•

दोनों दिल में आग, क्षेम, प्रेम में हो अगर।
है जहरीला नाग, इकतरफा हो तो 'सलिल'।।
•

आड़े आता काम, हो वयस्क तो प्रेम के।
अगर नहीं हों दाम, जले न चूल्हा जेब में।।
•

जब तुलसी को एक, साँप और रस्सी लगे।
पाठ पढ़ाओ नेक, प्रेम वासना बन कहे।।
•

खुसरो फूले श्वास, प्रौढ़ हुआ तो प्रेम की।
तब बुझ पाती प्यास, कविता पड़ती सुनाना।।
•
प्रेम करे वह नष्ट, लोक-नीति विपरीत जो।
भोगे अनगिन कष्ट, पृथ्वी-संयोगिता ने।।
•

'सलिल' न दम दे साथ, प्रेम-पींग केशव भरे।
पटक रहा कवि हाथ, 'बाबा' सुन कर माथ पर।।
•

वही बनाएँ काम, वृद्ध प्रेम कर राम से।
प्रेम करे निष्काम, रति न काम के प्रति रहे।।
ममतामय अनुवाद, सूर-यशोदा पीर का।।
•
सचमुच ही अनमोल, द्रुपदसुता का प्रेम था।
सखी-साख अनमोल, चीर बढ़ाया कृष्ण ने।।
•
बंधु-शत्रु को न्योत, भिन्न प्रेम रुक्मिणी का।
जली प्रेम की ज्योत, खुद को अपहृत कराया।।
•
नित्य प्रेम का पाठ, गुणिजन शिशु को पढ़ाते।
होते उसके ठाठ, सब से मिलता प्रेम नित।।
•
नए कुछ काम, बालक चाहे टालना नित्य।
कहते हो यश-नाम, 'सीखो बच्चे प्रेम से'।।
•
लेता कहीं निहार, हो किशोर जब प्रेम से।
मिले डाँट-फटकार, करते निगरानी स्वजन।।
•
चाहे भरे उड़ान, युवा प्रेम का पाठ पढ़।
'ले लो दोनों जान, खाप कतरती पर- कहे।।'
•
दोनों दिल में आग, क्षेम, प्रेम में हो अगर।
है जहरीला नाग, इकतरफा हो तो 'सलिल'।।
•
आड़े आता काम, हो वयस्क तो प्रेम के।
अगर नहीं हों दाम, जले न चूल्हा जेब में।।
•
जब तुलसी को एक, साँप और रस्सी लगे।
पाठ पढ़ाओ नेक, प्रेम वासना बन कहे।।
•
खुसरो फूले श्वास, प्रौढ़ हुआ तो प्रेम की।
तब बुझ पाती प्यास, कविता पड़ती सुनाना।।
•
प्रेम करे वह नष्ट, लोक-नीति विपरीत जो।
भोगे अनगिन कष्ट, पृथ्वी-संयोगिता ने।।
•
'सलिल' न दम दे साथ, प्रेम-पींग केशव भरे।
पटक रहा कवि हाथ, 'बाबा' सुन कर माथ पर।।
•
वही बनाएँ काम, वृद्ध प्रेम कर राम से।
प्रेम करे निष्काम, रति न काम के प्रति रहे।।
•
थे शीरीं-फरहाद, तन न मिले ,मन से मिले।
सदा समय ने याद, लैला-मजनूं को रखा।।
थे शीरीं-फरहाद, तन न मिले ,मन से मिले।
सदा समय ने याद, लैला-मजनूं को रखा।।
•
मन में बस महिवाल, दूर सोहनी से रहा।
अब भी बने मिसाल, ढोल-मारू प्रेम की।।
•
आजादी के साथ, प्रेम भगत सिंह ने किया।
नहीं झुकाया माथ, चूम लिया फंदा मगर।।
•
मीरा सका न मार, कृष्ण-प्रेम में लीन थी।
अमर विनत संसार, पिया हलाहल हो गई।।
•
गरल संत सुकरात, प्रेम सत्य से कर पिए।
अमर जगत-विख्यात, देहपात के बाद भी।।
•
सिक्के को कर भूल, खोटा कहें न प्रेम के।
सिक्के को कर भूल, वियोग-संयोग दो।।
•
प्रेम- वासना-भोग, 'लव जिहाद'; 'लिव इन' नहीं।
मन में बस महिवाल, दूर सोहनी से रहा।
अब भी बने मिसाल, ढोल-मारू प्रेम की।।
•
आजादी के साथ, प्रेम भगत सिंह ने किया।
नहीं झुकाया माथ, चूम लिया फंदा मगर।।
•
मीरा सका न मार, कृष्ण-प्रेम में लीन थी।
अमर विनत संसार, पिया हलाहल हो गई।।
•
गरल संत सुकरात, प्रेम सत्य से कर पिए।
अमर जगत-विख्यात, देहपात के बाद भी।।
•
सिक्के को कर भूल, खोटा कहें न प्रेम के।
सिक्के को कर भूल, वियोग-संयोग दो।।
•
प्रेम- वासना-भोग, 'लव जिहाद'; 'लिव इन' नहीं।
हैं सामाजिक रोग, हेय-त्याज्य-निंदाजनक।।
•
जब करता है त्याग, प्रेम खरा तब ही 'सलिल'।
दोनों राग-विराग, एक समान उसे लगे।।
*
अंतर बहुत महीन, प्रेम-वासना बीच है।
भूलो तो हो दीन, पहचानो तो सुख मिले।।
•
प्रेम रहे अनजान, मिल न मिलन के फर्क से।
'सलिल' रहे रस-खान, आत्म-प्रेम खुशबू सदृश।।
•
जब करता है त्याग, प्रेम खरा तब ही 'सलिल'।
दोनों राग-विराग, एक समान उसे लगे।।
*
अंतर बहुत महीन, प्रेम-वासना बीच है।
भूलो तो हो दीन, पहचानो तो सुख मिले।।
•
प्रेम रहे अनजान, मिल न मिलन के फर्क से।
'सलिल' रहे रस-खान, आत्म-प्रेम खुशबू सदृश।।
•
बंधु-शत्रु को प्रेम, भिन्न राह रुक्मिणी की।मिला प्रेम से क्षेम, खुद को अपहृत कराया।।
•
नित्य प्रेम का पाठ, गुणिजन शिशु को पढ़ाते।
होते उसके ठाठ, सब से मिलता प्रेम नित।।
•
नित्य नए यदि काम, बालक चाहे टालना।
कहते हो यश-नाम, 'सीखो बच्चे प्रेम से'।।
•
लेता कहीं निहार, यदि किशोर मन प्रेम से।
मिले डाँट-फटकार, करते निगरानी स्वजन।।
•
चाहे भरे उड़ान, युवा प्रेम का पाठ पढ़।
'ले लो दोनों जान', खाप कतरती पर तुरत।।
•
दोनों दिल में आग, क्षेम, प्रेम में हो अगर।
है जहरीला नाग, इकतरफा हो तो 'सलिल'।।
•
आड़े आता काम, हो वयस्क तो प्रेम के।
नहीं जेब में दाम, जले न चूल्हा एक दिन।।
•
जब तुलसी को एक, साँप और रस्सी लगे।
पाठ पढ़ाओ नेक, प्रेम वासना मत बने।।
•
खुसरो फूले श्वास, प्रौढ़ हुआ तो प्रेम की।
तब बुझ पाती प्यास, जब कविता रच दें सुना।।
•
करता प्रेम अनिष्ट, लोक-नीति विपरीत जो।
भोगे अनगिन कष्ट, पृथ्वी-संयोगिता ने।।
•
'सलिल' न दम दे साथ, प्रेम-पींग केशव भरे।
पटक रहा कवि हाथ, 'बाबा' सुन कर माथ पर।।
•
वही बनाएँ काम, वृद्ध प्रेम कर राम से।
शुद्ध प्रेम निष्काम, रति न काम के प्रति रहे।।
•
खुश शीरीं-फरहाद, तन न मिले ,मन से मिले।
सदा समय ने याद, लैला-मजनूं को रखा।।
खुश शीरीं-फरहाद, तन न मिले ,मन से मिले।
सदा समय ने याद, लैला-मजनूं को रखा।।
•
मन में बस महिवाल, दूर सोहनी से रहा।
अब भी बने मिसाल, ढोल-मारू प्रेम की।।
•
आजादी के साथ, प्रेम भगत सिंह ने किया।
नहीं झुकाया माथ, चूम लिया फंदा भले।।
•
विष भी सका न मार, कृष्ण-प्रेम में लीन को।
कह संसार असार, निर्भय मीरा विष पिए।।
•
गरल संत सुकरात, प्रेम सत्य से कर पिए।
मर जगत-विख्यात, देहपात के बाद भी।।
•
खोता कहें न भूल, प्रेम सदा सिक्का खरा।
पहलू काँटे-फूल, हैं वियोग-संयोग दो।।
•
प्रेम- वासना-भोग, 'लव जिहाद'; 'लिव इन' नहीं।
हैं सामाजिक रोग, हेय-त्याज्य-निंदाजनक।।
•
जब करता है त्याग, प्रेम खरा तब ही 'सलिल'।
एक समान उसे लगे, दोनों राग-विराग।।
•
अंतर बहुत महीन, प्रेम-वासना बीच है।
भूलो तो हो दीन, पहचानो तो सुख मिले।।
•
प्रेम सके दिल हार, मिल न मिलन को जानकर।
'सलिल' प्रेम रस-धार, नेह नर्मदा है अमर।।
मन में बस महिवाल, दूर सोहनी से रहा।
अब भी बने मिसाल, ढोल-मारू प्रेम की।।
•
आजादी के साथ, प्रेम भगत सिंह ने किया।
नहीं झुकाया माथ, चूम लिया फंदा भले।।
•
विष भी सका न मार, कृष्ण-प्रेम में लीन को।
कह संसार असार, निर्भय मीरा विष पिए।।
•
गरल संत सुकरात, प्रेम सत्य से कर पिए।
मर जगत-विख्यात, देहपात के बाद भी।।
•
खोता कहें न भूल, प्रेम सदा सिक्का खरा।
पहलू काँटे-फूल, हैं वियोग-संयोग दो।।
•
प्रेम- वासना-भोग, 'लव जिहाद'; 'लिव इन' नहीं।
हैं सामाजिक रोग, हेय-त्याज्य-निंदाजनक।।
•
जब करता है त्याग, प्रेम खरा तब ही 'सलिल'।
एक समान उसे लगे, दोनों राग-विराग।।
•
अंतर बहुत महीन, प्रेम-वासना बीच है।
भूलो तो हो दीन, पहचानो तो सुख मिले।।
•
प्रेम सके दिल हार, मिल न मिलन को जानकर।
'सलिल' प्रेम रस-धार, नेह नर्मदा है अमर।।
•
गुमी प्रेम की छाँव, नदिया रूठी गाँव से।
घायल युग के पाँव, छेद हुआ है नाव में।।
•
फूलों की मुस्कान, शूलों से है प्रताड़ित।
कली हुई बेजान, प्रेम न पाया सुवासित।। ५६
•••
तिल संक्रांति
उत्तरायणी सूर्य, नेह नर्मदा नहा ले।
बजे दस दिशा तूर्य, तिल-गुड़ स्नेह-मधुर मिले।।
•
नभ छू सके पतंग, यश आशा विश्वास की।
मन में रहे उमंग, गूँजे कीर्ति प्रयास की।।
•
बालारुण दे नाम, दिनकर विजय तिलक करे।
सूर्य बनाए काम, हे दिनेश! प्रभु से मिला।।
•
श्वेत-रक्त अरु श्याम, तिल कडु-मधुर-कसैल भी।
वामा रहना वाम, वाम न होना पर कभी।
•••
देखें भ्रमित विकास
हैं जिज्ञासु न आज, नादां दाना बन रहे।
राज न हो नाराज, कवि भी मुँह देखी कहे।।
•
देखें भ्रमित विकास, सिसक रहीं अमराइयाँ।
पैर झेलते त्रास, एड़ी लिए बिमाइयाँ।।
•
जो नाजुक बेजान, जा बैठी शोकेस में।
थामे रही कमान, जो वह जीती रेस में।।
•••
यमकीय सोरठा
मन को हो आनंद, सर! गम सरगम भुला दे।
क्यों कल? रव कर आज, कलरव कर कर मिला ले।।
•
घुटना रहता मौन, घुट कर भी घुट ना सके।
दिवस रात्रि या भौन, घटता या बढ़ता नहीं।।
•
घोंट-छान हो तृप्त, कर जिह्वा रसपान कर।
घुटना है संतप्त, भोग न पाता कभी कुछ।।
•
उठा न पाया शीश, घुटना जिस पर धर गया।
बचकर रहें मनीष, घुटने से दूरी रखें।।
•
घुटना छूते लोग, करें शत्रुता निमंत्रित।
लाइलाज है रोग, समझें आदर दे रहे।।
•
कभी असल को मात, नकली दे सकता नहीं।
घुटना देखें तात, असल-नकल सम हैं नहीं।।
•
कहता यही विवेक, हो जबरा यदि सामने।
झट घुटना दें टेक, शीश न कटा; उठाइए।।
•
घुट मत मन में बाद, जो कहना बिंदास कह।
घूँट घूँट ले स्वाद, मत उड़ेल रस कंठ में।।
•
बाबा रामदास जी नर्मदापुरम
राम दास जी सिद्ध हैं, अविनाशी प्रभु दास।
लीन निगुण विधि में रहे, भव-त्यागी हरि-खास।।
•
आत्माराम सराहिए, परमात्मा के दास।
जा गिरि मोहन बस रहे, गुरु पर कर विश्वास।।
•••
मन के अंदर झाँक
मन के अंदर झाँक, अटक-भटक मत बावरे।
खुद को कम मत आँक, साथ हमेशा साँवरे।।
•
जो करते संदेह, शांत न हो सकते कभी।
कर विश्वास विदेह, रहे शांत ही हमेशा।।
•
दिखती भले विराट, निराधार गिरती लहर।
रह साहस के घाट, जीत अविचलित रह सलिल।।
•
मिले वहीं आनंद, भय बंधन कटते जहाँ।
गूँजा करते छंद, मन के नीलाकाश में।।
•
कर्म स्वास्थ्य अनुभूति, संगत मिल परिणाम दें।
शुभ की करें प्रतीति, हों असीम झट कर विलय।।
•
सोच सकारात्मक रखें, जीवन हो सोद्देश्य।
कार्य निरंतर कीजिए, पूरा हो उद्देश्य।।
•
जीवन केवल आज, नहीं विगत; आगत नहीं।
पल पल करिए काज, दें संदेश किशन यही।।
•
हुए मूल से दूर, ज्यों त्यों ही असहाय हम।
आँखें रहते सूर, मिले दर्द-दुख अहं से।।
•••
जाते हम लें मान, नगर न आ या जा सकें।।
•
मकां इमारत जान, घर घरवालों से बने।
जीव आप भगवान, मंदिर में मूरत महज।।
•
सलिल-धार में खूब, नृत्य करें रवि-रश्मियाँ।
जा प्राची में डूब, रवि ईर्ष्या से जल मरा।।
जा प्राची में डूब, रवि ईर्ष्या से जल मरा।।
•
मन बैठा था मौन, लिखवाती संगत रही।
किसका साथी कौन?, संग खाती पंगत रही।।
किसका साथी कौन?, संग खाती पंगत रही।।
•
उद्यम से हो सिद्ध, कार्य मनोरथ से नहीं।'सलिल, लक्ष्य हो बिद्ध, सतत निशाना साधिए।।
•
घर का मालिक आज, महीनों बाद न सुन रहा।
नहीं पड़ रही डाँट, रखे मौन व्रत मालकिन।।
*
आज तनिक आराम, बेलन-झाड़ू को मिला।
बार-बार हो तीज, मन रहे हैं ईश से।।
•
मिले न मन को चैन, मीठी वाणी सुने बिन।
मिलें नैन से नैन, सोचे दिल धड़कनें गिन।।
•
रखें बावड़ी साफ़, गहरा कर हर कूप को।
उन्हें न करिये माफ़, जो जल-स्रोत मिटा रहे।।
•
सकें मछलियाँ नाच, पोखर-ताल भरे रहें।
प्रणय पत्रिका बाँच, दादुर कजरी गा सकें।।
•
पर्व -खेत-पठार पर हरियाली हो खूब।
पवन बजाए ढोलकें, हँसी-ख़ुशी में डूब।।
•
संबंधों की नाव, पानी-पानी हो रही।
अनचाहा अलगाव, नदी-नाव-पतवार में।
•
नहीं झील का चाव, सिसक रहे पोखर दुखी।
पानी सूखा आँख का, बेपानी इंसां हुआ।।
•
घाट-घाट पर मौन, दादुर-पीड़ा अनकही।
संबंधों की नाव, पानी-पानी हो रही।
•
गिरि खोदे, वन काट, मानव ने आफत गही।
खड़ी हो रही खाट, अब पछताए होत क्या।
•
दे सुख-यश-उत्कर्ष, काल-ग्रंथ का पृष्ठ नव।
अंकित करे सहर्ष, करनी के हस्ताक्षर।।
•
है उनकी दरकार, ऊपरवाले तुझे क्यों?
•
छंद सवैया सोरठा, लुप्त नहीं- हैं मौन।
ह्रदय बसाये पीर निज, देख रहे चुप कौन?
•
करे पीर से प्रेम जब, छंद तभी होता प्रगट।
बसें कलम में तभी रब, जब आँसू हों आँख में।।
•
शब्द-शब्द आनंद, श्वास-श्वास में जब बसे।
तभी गुंजरित छंद, होते बनकर प्रार्थना।।
•
धुआँ कामना हो गयी, छूटी श्वासा रेल।
जग-जीवन लगने लगा, जीत-हार का खेल।।
•
इतना ही इतिहास, मनुज, असुर-सुर का रहा।
हर्ष शोक संत्रास, मार-पीट, जय-पराजय।।
•
अपनापन अनुप्रास, श्लेष स्नेह हरदम रहा।
यमक अधर धर हास, सत्य सदा कहता अभय।।
•
जीवन में परिहास, हो भोजन में नमक सा।
जब हो छल-उपहास साध्य, तभी होती प्रलय।।
•
कुछ कर ले सायास, अनायास कुछ हो रहा।
देखे मौन सहास अंश पूर्ण में हो विलय।।
•
लक्ष्य चूम ले पैर, एक सीध में जो बढ़े।
कोई न करता बैर, लट्ठ अगर हो हाथ में।।
•.
बाँस बने पतवार, फँसे धार में नाव जब।
देता है आराम, बखरी में जब खाट हो।।
•
आप न कहता हाल भले रहे दिल सिसकता।
करता नहीं खयाल नयन कौन सा फड़कता?
•
रहता है निष्पक्ष विश्व हँसे या सिसकता।
रहता है निष्पक्ष विश्व हँसे या सिसकता।
सब इसके समकक्ष जड़ चलता या फिसलता।।
•
आ समान जयघोष, आसमान तक गुँजाया।
आस मान संतोष, आ समा न कह कराया।। -अलंकार यमक
आस मान संतोष, आ समा न कह कराया।। -अलंकार यमक
•
सूरज-नेता रोज, ऊँचाई पा तपाते।
झुलस रहे हैं लोग, कर पूजा सर झुकाते।। -अलंकार श्लेष
सूरज-नेता रोज, ऊँचाई पा तपाते।
झुलस रहे हैं लोग, कर पूजा सर झुकाते।। -अलंकार श्लेष
•
आँख
कहीं अजाने राज, आँख न दिल का खोल दे।
रखता जग इस व्याज, काला चश्मा आँख पर।।
•
अंधा सकल समाज, नाम नयनसुख सूर का।
है अनीति का राज, आँख न खुलती इसलिए।।
•
फूटी आँख न सत्य, आँख न भाती आँख को।
जाना मगर असत्य, आना सच है आँख का।।
•
उषा आँख खोलती, आँख तरेरे दोपहर।
साँझ झपकती आँख, आँख मूँद लेती निशा।।
•
आँख बिठाती खूब, श्याम-श्वेत में समन्वय।
दूब खूब की खूब, जीव-जगत में सत्य ज्यों।।
•
आँखें कहें हिसाब, आँखों का काजल चुरा।
पूरा हुआ जनाब!, दिल के बदले दिल लिया।।
•
दिल पर सबल प्रहार, आँख मार आँखें करें।
चेहरा कर रतनार, आँख न मिल झुक बच गई।।
•
किया प्रेम संवाद, आँख मिलाकर आँख ने।
बरज किया परिवाद, आँख दिखाकर आँख ने।।
•
मन में उठे उमंग, आँखों में ऑंखें गड़ीं।
'करिए आप न तंग', आँखें इठला कर कहें।।
•
हुए गुलाबी गाल, दो-दो आँखें चार लख।
अंतर्मन की ढाल, पलक लपककर गिर बनी।।
•
पल में हाहाकार, आँख मुँदी तो मच गया।
जीवन का सत्कार, आँख खुली होने लगा।।
•
आँख नहीं लाचार, कहे अनकहा बिन कहे।
आँख लुटाती प्यार, आँख न नफरत चाहती।।
•
बैठे वीर जवान, सरहद पर आँखें गड़ा।
पल-पल सीना तान, अरि की आँखों में चुभें।।
•
सूत है पलक सामान, आँख पुतलिया है सुता।
दोनों का सम मान, क्यों आँखों को खटकता।।
•
कर पाया लचर, आँख फोड़कर भी नहीं।
पल में तीक्ष्ण प्रहार, मन की आँखों ने किया।।
•
आँखें जब आवास, अपनों-सपनों का हुईं।
किस्से कब सायास, कौन किराया माँगता।।
•
कान देखते दृश्य, अधर सुनें आँखें कहें।
लेकिन प्रेम अदृश्य, दसों दिशा में है बसा।।
•
'री! मत आँख नटेर', आँख बोलती आँख से।
'देर बने अंधेर', आँख सिखाती है सबक।।
•
आँखों ने तस्वीर, ताक-झाँककर आँक ली।
फूट गई तकदीर, आँख फेर ली आँख ने।।
•
मूँद आँख को आँख, आँख मिचौली खेलती।
कहे सुहागन आँख, आँख मूँद मत देवता।।
फूटी आँख न सत्य, आँख न भाती आँख को।
जाना मगर असत्य, आना सच है आँख का।।
•
उषा आँख खोलती, आँख तरेरे दोपहर।
साँझ झपकती आँख, आँख मूँद लेती निशा।।
•
आँख बिठाती खूब, श्याम-श्वेत में समन्वय।
दूब खूब की खूब, जीव-जगत में सत्य ज्यों।।
•
आँखें कहें हिसाब, आँखों का काजल चुरा।
पूरा हुआ जनाब!, दिल के बदले दिल लिया।।
•
दिल पर सबल प्रहार, आँख मार आँखें करें।
चेहरा कर रतनार, आँख न मिल झुक बच गई।।
•
किया प्रेम संवाद, आँख मिलाकर आँख ने।
बरज किया परिवाद, आँख दिखाकर आँख ने।।
•
मन में उठे उमंग, आँखों में ऑंखें गड़ीं।
'करिए आप न तंग', आँखें इठला कर कहें।।
•
हुए गुलाबी गाल, दो-दो आँखें चार लख।
अंतर्मन की ढाल, पलक लपककर गिर बनी।।
•
पल में हाहाकार, आँख मुँदी तो मच गया।
जीवन का सत्कार, आँख खुली होने लगा।।
•
आँख नहीं लाचार, कहे अनकहा बिन कहे।
आँख लुटाती प्यार, आँख न नफरत चाहती।।
•
बैठे वीर जवान, सरहद पर आँखें गड़ा।
पल-पल सीना तान, अरि की आँखों में चुभें।।
•
सूत है पलक सामान, आँख पुतलिया है सुता।
दोनों का सम मान, क्यों आँखों को खटकता।।
•
कर पाया लचर, आँख फोड़कर भी नहीं।
पल में तीक्ष्ण प्रहार, मन की आँखों ने किया।।
•
आँखें जब आवास, अपनों-सपनों का हुईं।
किस्से कब सायास, कौन किराया माँगता।।
•
कान देखते दृश्य, अधर सुनें आँखें कहें।
लेकिन प्रेम अदृश्य, दसों दिशा में है बसा।।
•
'री! मत आँख नटेर', आँख बोलती आँख से।
'देर बने अंधेर', आँख सिखाती है सबक।।
•
आँखों ने तस्वीर, ताक-झाँककर आँक ली।
फूट गई तकदीर, आँख फेर ली आँख ने।।
•
मूँद आँख को आँख, आँख मिचौली खेलती।
कहे सुहागन आँख, आँख मूँद मत देवता।।
•
मिला आँख से आँख, कही कहानी आँख की।
बढ़ी आँख की साख, आँख दिखाकर आँख को।।
मिला आँख से आँख, कही कहानी आँख की।
बढ़ी आँख की साख, आँख दिखाकर आँख को।।
•
बसी आँख में मौन, आँख-आँख में डूबकर।
कहो जयी है कौन?, आँख-आँख से लड़ पड़ी।।
बसी आँख में मौन, आँख-आँख में डूबकर।
कहो जयी है कौन?, आँख-आँख से लड़ पड़ी।।
•
आँख कर सके बात, आँख फूटती यदि नहीं।
'सलिल' मिली सौगात, तारा बन जा आँख का।।
आँख कर सके बात, आँख फूटती यदि नहीं।
'सलिल' मिली सौगात, तारा बन जा आँख का।।
•
उसकी ऑंखें फोड़, जो चुभता हो आँख में।
नहीं शांति का तोड़, मिटा आँख की किरकिरी।।
•
गयी सानिया पाक, आँख झुकाकर लाज से।
करे कलेजा चाक,आँख झपक बिजली गिरा।।
उसकी ऑंखें फोड़, जो चुभता हो आँख में।
नहीं शांति का तोड़, मिटा आँख की किरकिरी।।
•
गयी सानिया पाक, आँख झुकाकर लाज से।
करे कलेजा चाक,आँख झपक बिजली गिरा।।
•
करो न आँखें लाल, आँख न खटके आँख में।
आँख न करे बवाल, काँटा कोई न आँख का।।
करो न आँखें लाल, आँख न खटके आँख में।
आँख न करे बवाल, काँटा कोई न आँख का।।
•
'सलिल' आँख है बंद, आँख न खुलकर खुल रही।
सुनो सृजन के छंद, आँख अबोले बोलती।।
सुनो सृजन के छंद, आँख अबोले बोलती।।
•
आँख मुँदी झट आँख, लजा-रिझा-मिल मौन हो।
आँख खुली झुक आँख, पूछ न पूछे कौन हो।।
आँख मुँदी झट आँख, लजा-रिझा-मिल मौन हो।
आँख खुली झुक आँख, पूछ न पूछे कौन हो।।
•
आँख उठी दिल हार, जीत गई दिल; आँख झुक।
आँख करे मनुहार, कर इज़हार न; आँख रुक।।
•
जिनकी खोटी दृष्टि, फूटी आँख न सुहाते। आँख उठी दिल हार, जीत गई दिल; आँख झुक।
आँख करे मनुहार, कर इज़हार न; आँख रुक।।
•
करें स्नेह की वृष्टि, आँख स्वस्थ्य रखिए सदा।।
•
मिला महत्त्व अशेष, एक न दो, लीं तीन जब।
मिलते उमा-उमेश, आँखें चार न; पाँच कर।।
•
आँखों में बल खूब, आँख खुली तो पड़ गए।
अश्रु-धार में डूब, आँख डबडबा रह गई।।
•
आँख दिखाना छोड़, उतरे खून न आँख में।
फेर न, पर ले मोड़, आँख चुराना भी गलत।।
•
आँखों में बल खूब, आँख खुली तो पड़ गए।
अश्रु-धार में डूब, आँख डबडबा रह गई।।
•
आँख दिखाना छोड़, उतरे खून न आँख में।
फेर न, पर ले मोड़, आँख चुराना भी गलत।।
•
है अक्षम अपराध, धूल आँख में झोंकना।
पूरी हो हर साध, आँख खोल दे समय तो।।
है अक्षम अपराध, धूल आँख में झोंकना।
पूरी हो हर साध, आँख खोल दे समय तो।।
•
पाकर धन-संपत्ति, आँख चौंधियाए नहीं।
झेल- न कर आपत्ति, हर बाधा पर आँख रख।।
पाकर धन-संपत्ति, आँख चौंधियाए नहीं।
झेल- न कर आपत्ति, हर बाधा पर आँख रख।।
•
रहो आँख से दूर, आँखें पीली-लाल गर।
वे आँखें हैं सूर, जो काँटा हों आँख का।।
रहो आँख से दूर, आँखें पीली-लाल गर।
वे आँखें हैं सूर, जो काँटा हों आँख का।।
•
छोड़ न कह: 'है दीन', शत्रु किरकिरी आँख की।
पल में आँखें छीन, दुश्मन आँखें फोड़ता।।
•
रखें आँख की ओट, आँख बिछा स्वागत करें।
हो न नज़र में खोट, आँख पुतलियाँ बेटियाँ।।
•
आँखों का तारा 'सलिल', जब श्रम करे अशेष।
आँख फाड़ देखे जगत, उन्नति करे विशेष।।
•
छोड़ न कह: 'है दीन', शत्रु किरकिरी आँख की।
पल में आँखें छीन, दुश्मन आँखें फोड़ता।।
•
रखें आँख की ओट, आँख बिछा स्वागत करें।
हो न नज़र में खोट, आँख पुतलियाँ बेटियाँ।।
•
आँखों का तारा 'सलिल', जब श्रम करे अशेष।
आँख फाड़ देखे जगत, उन्नति करे विशेष।।
•
आँख पर मुहावरे:
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