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शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

सवैया मत्तगयंद

छंद सलिला
मत्त गयंद सवैया
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आज कहें कल भूल रहे जुमला बतला छलते जनता को 
बाप-चचा चित चुप्प पड़े नित कोस रहे अपनी ममता को 
केर व बेर हुए सँग-साथ तपाक मिले तजते समता को
चाह मिले कुरसी फिर से ठगते जनको भज स्वाराथता को
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