शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

navgeet:

नवगीत
संजीव
.
हाथों में मोबाइल थामे
गीध दृष्टि पगडंडी भूली
भटक न जाए
.
राजमार्ग पर जाम लगा है
कूचे-गली हुए हैं सूने
ओवन-पिज्जा का युग निर्दय
भटा कौन चूल्हे में भूने?
महानगर में सतनारायण
कौन कराये कथा तुम्हारी?
गोबर बिन गणेश का पूजन
कैसे होगा बिपिनबिहारी?
कलावती की कथा सुन रहे
लीला की लीला मन झूली
मटक न आए
.
रावण रखकर रूप राम का
करे सिया से नैन मटक्का
मक्का जाने खों जुम्मन नें
बेंच दई बीजन कीं मक्का
हक्का-बक्का खाला बेबस
बिटिया बारगर्ल बन सिसके
एड्स बाँट दूँ हर गाहक को
भट्टी अंतर्मन में दहके
ज्वार-बाजरे की मजबूरी
भाटा-ज्वार दे गए सूली
गटक न पाए
.

   

5 टिप्‍पणियां:


  1. ओह

    अंतर्मन के पार जाता हुआ यह मार्मिक नवगीत

    जवाब देंहटाएं
  2. Sheelendra Chauhan

    रावण रखकर रूप राम का-अच्छी अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  3. Brijesh Shrivastava

    नव गीत का वितान विस्तार मन मोहक है
    नव वर्ष पर शुभ कामनायें

    जवाब देंहटाएं
  4. Radhey Raman Tripathi
    मित्र
    नवगीत-सृजन में आपकी सिद्धहस्तता नित नई ऊंचाइयां छू रही है। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. Sanjiv Verma 'salil' sheelendra ji, brijesh ji, radhe shyam ji, ripudaman ji utsahvardhan hetu abhar.

    जवाब देंहटाएं