गुरुवार, 15 जनवरी 2015

navgeet: -sanjiv

अभिनव प्रयोग:
नवगीत
संजीव  
.
जब लौं आग न बरिहै तब लौं,
ना मिटहै अंधेरा
सबऊ करो कोसिस मिर-जुर खें
बन सूरज पगफेरा
.
कौनौ बारो चूल्हा-सिगरी
कौनौ ल्याओ पानी
रांध-बेल रोटी हम सेंकें
खा रौ नेता ग्यानी
झारू लगा आज लौं काए
मिल खें नई खदेरा
.
दोरें दिखो परोसी दौरे
भुज भेंटें बम भोला
बाटी भरता चटनी गटखें
फिर बाजे रमतूला
गाओ राई, फाग सुनाओ
जागो, भओ सवेरा
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(बुंदेलों लोककवि ईसुरी की चौकड़िया फाग की तर्ज़ पर प्रति पर मात्रा १६-१२, नरेंद्र छंद)

Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com

9 टिप्‍पणियां:

  1. Lata Yadav

    वाह क्या कहने बधाई


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  2. Gajendra Karan

    अभिनव प्रयोग अच्छा है अग्रज जी. सप्रेम गजेन्द्र कर्ण जबलपुर .


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  3. वाहहहह बहुत ही सुंदर, कहीं कहीं भाषा क कारण समझने मे दिक्कत आ रही लेकिन फिर भी ८० प्रतिशत तो समझ आ ही जा रहा

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  4. lokgeet aur lokbhasha men aisa swabhavik hai. jo shabd samajh men n aaye poochhlen. aapke anchal men faag gaaee jati hai kya?

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  5. हाँ आचार्य जी, फाग आदि मेरे बचपन मे इधर कभी कभार सुनाई देते थे

    अब चैता आदि ही सुनाई देते है वो भी क्या बोलते है गाने मे मेरी समझ नही आता

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  6. gramya janon ke paas baithkar sunen, likhen aur arth poochhen. faag aur kabeera holi ke avsar par gaye jate hain. ukt samagree milane par unka vishleshan kar rachna vidhan tay kiya jaae. fir unhen adhunik sandarbhon men likha, gaya, chhapaya jae anyatha ye sab lupt ho jayenge. hamari virasat hai ye. bahumoolya.

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