गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

navgeet: sanjiv

नवगीत:



जिजीविषा अंकुर की
पत्थर का भी दिल
दहला देती है
*
धरती धरती धीरज
बनी अहल्या गुमसुम
बंजर-पड़ती लोग कहें
ताने दे-देकर
सिसकी सुनता समय
मौन देता है अवसर
हरियाती है कोख
धरा हो जाती सक्षम
तब तक जलती धूप
झेलकर घाव आप
सहला लेती है
*
जग करता उपहास
मारती ताने दुनिया
पल्लव ध्यान न देते
कोशिश शाखा बढ़ती
द्वैत भुला अद्वैत राह पर
चिड़िया चढ़ती
रचती अपनी सृष्टि आप
बन अद्भुत गुनिया
हार न माने कभी
ज़िंदगी खुद को खुद
बहला लेती है
*
छाती फाड़ पत्थरों की
बहता है पानी
विद्रोहों का बीज

उठाता शीश, न झुकता
तंत्र शिला सा निठुर
लगे जब निष्ठुर चुकता 
याद दिलाना तभी
जरूरी उसको नानी
जन-पीड़ा बन रोष
दिशाओं को भी तब
दहला देती है
*

14 टिप्‍पणियां:


  1. Sitaram Chandawarkar chandawarkarsm@gmail.com [ekavita]
    3:37 pm (1 घंटे पहले)

    ekavita

    आचार्य ’सलिल’ जी,
    अति सुंदर!
    संत तुकाराम ने कहा है:
    "ओलें मूळ भेदी पाषाणाचें अंग ।
    प्रयत्नांची सांग । कार्यसिद्धीं॥
    (कोमल जड तोडती है पाषाण का अंग
    प्रयत्नों की साथ हो कर्यसिद्धि के लिए)
    सस्नेह,
    सीताराम चंदावरकर

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  2. Jagdish Prasad Jend
    अपनी सफल प्रयोगात्मकता सहित उत्कृष्ट नवगीत। बधाई

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  3. Hari Sharma

    अति सुन्दर...बधाई आपको.

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  4. Sanjiv Verma 'salil'

    पवन जी, कृष्णनंदन जी, सीमा जी, हरी जी, जगदीश जी, रणवीर जी हार्दिक धन्यवाद

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  5. Shivji Srivastava

    सुन्दर बिम्बों से सजा नवगीत

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  6. Asha Pandey Ojha Asha

    बहुत सुन्दर

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  7. Suresh Saxena

    बहुत सुंदर बहुत दिन बाद आपकी रचना देखने को मिली। क्या आप परेशानी मे थे। घर मे सब ठीक है।


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  8. Sanjiv Verma 'salil'

    सुरेश जी, आशा द्वय, वंदना जी, राजीवजी, मुकेश जी आभार. मैं २ से ५ तक इटावा तथा ५ से १० तक मैनपुरी में था. ११ को जबलपुर लौटा। यह रचा गया और अब पाठक पंचायत में प्रस्तुत है.

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  9. Ram Gautam

    आ. आचार्य 'सलिल' जी,
    प्रणाम:
    बहुत दूर की बात, गुनिया ठीक से दिखाई तो नहीं दी किन्तु
    'द्वैत भुला अद्वैत राह पर चिड़िया चढ़ती' के सुन्दर भाव, बधाई !!
    सादर- आरजी

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