रविवार, 30 नवंबर 2014

navgeet:

नवगीत:


नयन झुकाये बैठे हैं तो
मत सोचो पथ हेर रहे हैं
*
चहचह करते पंछी गाते झूम तराना
पौ फटते ही, नहीं ठण्ड का करें बहाना
सलिल-लहरियों में ऊषा का बिम्ब निराला
देख तृप्त मन डूबा खुद में बन बेगाना
सुन पाती हूँ चूजे जगकर 
कहाँ चिरैया? टेर रहे हैं
*
मोरपंख को थाम हाथ में आँखें देखें  
दृश्य अदेखे या अतीत को फिर-फिर लेखें
रीती गगरी, सूना पनघट,सखी-सहेली  
पगडंडी पर कदम तुम्हारे जा अवरेखें
श्याम लटों में पवन देव बन  
श्याम उँगलियाँ फेर रहे हैं
*
नील-गुलाबी वसन या कि है झाँइ  तुम्हारी
जाकर भी तुम गए न मन से क्यों  बनवारी?
नेताओं जैसा आश्वासन दिया न झूठा-
दोषी कैसे कहें तुम्हें रणछोड़ मुरारी?
ज्ञानी ऊधौ कैसे समझें   
याद-मेघ मिल घेर रहे हैं?
*

4 टिप्‍पणियां:


  1. Ram Gautam gautamrb03@yahoo.com


    आ. आचार्य 'सलिल' जी,
    प्रणाम:
    अलग-२ भावों में सुन्दर 'श्याम' का वर्णन, बधाई !!
    सादर- आरजी
    श्याम लटों में पवन देव बन
    श्याम उँगलियाँ फेर रहे हैं

    जवाब देंहटाएं

  2. Ram Gautam gautamrb03@yahoo.com


    आ. आचार्य 'सलिल' जी,
    प्रणाम:
    अलग-२ भावों में सुन्दर 'श्याम' का वर्णन, बधाई !!
    सादर- आरजी
    श्याम लटों में पवन देव बन
    श्याम उँगलियाँ फेर रहे हैं

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  3. Pankaj Parimal

    like,thoda-thoda,mukhda zyada achchha hai

    जवाब देंहटाएं