गुरुवार, 30 अक्टूबर 2014

navgeet

नवगीत:
सांध्य सुंदरी
तनिक न विस्मित
न्योतें नहीं इमाम

जो शरीफ हैं नाम का
उसको भेजा न्योता
सरहद-करगिल पर काँटों की
फसलें है जो बोता

मेहनतकश की
थकन हरूँ मैं
चुप रहकर हर शाम

नमक किसी का, वफ़ा किसी से
कैसी फितरत है
दम कूकुर की रहे न सीधी
यह ही कुदरत है

खबरों में
लाती ही क्यों हैं
चैनल उसे तमाम?

साथ न उसके मुसलमान हैं
बंदा गंदा है
बिना बात करना विवाद ही
उसका धंधा है

थूको भी मत
उसे देख, मत
करना दुआ-सलाम
***

3 टिप्‍पणियां:

  1. Saurabh Pandey

    मौजूं माहौल पर प्रस्तुति के लिए हृदय से धन्यवाद आचार्यजी..
    गीत हरतरह से नवता लिये हुए है..
    सादर

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  2. पूर्णिमा वर्मन

    बहुत बढ़िया और सामयिक बधाई !

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  3. Sanjiv Verma 'salil'

    बिम्ब और प्रतिबिम्ब पूर्णिमा में शशि का सौरभ बिखराए
    धन्य हुआ संजीव निरख छवि गीत मुग्ध हो वारी जाए

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