सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

navgeet: haar gaya...

नवगीत:

हार गया
लहरों का शोर
जीत रहा
बाँहों का जोर

तांडव कर
सागर है शांत
तूफां ज्यों
यौवन उद्भ्रांत
कोशिश यह
बदलावों की

दिशाहीन
बहसें मुँहजोर

छोड़ गया
नाशों का दंश
असुरों का
बाकी है वंश
मनुजों में
सुर का है अंश

जाग उठो
फिर लाओ भोर

पीड़ा से
कर लो पहचान
फिर पालो
मन में अरमान
फूँक दो
निराशा में जान

साथ चलो 
फिर उगाओ भोर

*** 

  

1 टिप्पणी:

  1. Shilpa Bhartiya

    सर बहुत ही प्रेरणा दायक और सकारात्मकता से परिपूर्ण रचना! सादर आभार!

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