सोमवार, 6 अक्टूबर 2014

geet:

गीत:
आओ! चिठिया लिखें
*
आओ! चिठिया लिखें प्यार की, वर्जन की, मनुहार की
मीता! गीता कहें दिलों से, दिल की मधुर पुकार की

कहलें-सुनलें मन की बातें, सुबह सुनहरी मीठी रातें
भावनाओं के श्वेत कबूतर, अभिलाषा तोतों की पाँतें
अरमां कोयल कूके, नाचे मोर हर्ष-उल्लास का
मन को मन अपना सा लागे, हो मौसम मधुमास का 
शिया चंपा, सेज जूही की, निंदिया हरसिंगार की

भौजी छेड़ें सिन्दूरी संध्या से लाल कपोल भये
फूले तासु, बिखरे गेसू, अनबोले ही बोल गये
नज़र बचाकर, आँख चुराकर, चूनर खुद से लजा रही
दिन में सपन सलोने देखे, अँखियाँ मूंदे मजा यही
मन बासन्ती, रंग गुलाल में छेड़े राग मल्हार की

बूढ़े बरगद की छैंया में, कमसिन सपने गये बुने
नीम तले की अल्हड बतियाँ खुद से खुद ही कहे-सुने
पनघट पर चूड़ी की खनखन, छमछम पायल गाये गीत
कंडे पाठ खींचकर घूँघट, मिल जाए ना मन का मीत
गुपचुप लेंय बलैंया चितवन चित्त चुरावनहार की

निराकार साकार होंय सपने अपने वरदान दो
स्वस्तिक बंदनवार अल्पना रांगोली हर द्वार हो
गूँज उठे शहनाई ले अँगड़ाई, सोयी प्यास जगे
अविनाशी हो आस प्राण की, नित्य श्वास की रास रचे
'सलिल' कूल की करे कामना ज्वार-धार-पतवार की

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7 टिप्‍पणियां:

  1. pranavabharti@gmail.com

    बहुत सुन्दर गीत
    साधुवाद सलिल जी
    सादर
    प्रणव

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  2. suren84in@yahoo.com


    सलिल जी,
    जवानी में आपने बहुत सुंदर कविता लिखी थी
    मुबारक हो

    सुरेन्द्र

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  3. प्रणव जी, सुरेन्द्र जी आपका आशीष मिलना सौभाग्य है.

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  4. vijay3@comcast.net

    इस मनमोहक गीत के लिए बधाई, आदरणीय संजीव जी।

    सादर,

    विजय निकोर

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  5. Ram Gautam gautamrb03@yahoo.com

    आ. आचर्य 'सलिल' जी,
    प्रणाम:
    ग्रामीण, प्राकृतिक, और श्रंगार में बतियाती हुई १७ साल पुरानी
    एक मनमोहक रचना है आपको साधुवाद और बधाई !!
    सादर- आरजी
    कंडे पाठ खींचकर घूँघट, मिल जाए ना मन का मीत
    गुपचुप लेंय बलैंया चितवन चित्त चुरावनहार की

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