सोमवार, 25 अगस्त 2014

navgeet: nastak ki rekhayen -sanjiv

नवगीत:
मस्तक की रेखाएँ …
संजीव 
 
*
मस्तक की रेखाएँ 
कहें कौन बाँचेगा? 
*
आँखें करतीं सवाल 
शत-शत करतीं बवाल। 
समाधान बच्चों से 
रूठे, इतना मलाल। 
शंका को आस्था की 
लाठी से दें हकाल।  
उत्तर न सूझे तो 
बहाने बनायें टाल। 

सियासती मन मुआ
मनमानी ठाँसेगा … 
अधरों पर मुस्काहट 
समाधान की आहट। 
माथे बिंदिया सूरज 
तम हरे लिये चाहत।
काल-कर लिये पोथी
खोजे क्यों मनु सायत? 
कल का कर आज अभी
काम, तभी सुधरे गत।

जाल लिये आलस 
कोशिश पंछी फाँसेगा…
*
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

7 टिप्‍पणियां:

  1. ​Om Prakash Tiwari omtiwari24@gmail.com [ekavita] :

    आदरणीय सलिल जी,
    बढ़िया नवगीत है। बधाई।
    सादऱ
    ओमप्रकाश तिवारी

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  2. kamlesh kumar diwan kamleshkumardiwan@gmail.com
    ekavita

    sanjeev verma ji ka geet dekha achcha hai

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  3. Rakesh Khandelwal rakesh518@yahoo.com [ekavita]

    लिखा हुआ विधना का लेखा, जाँच सका है कौन ?
    प्रश्न सामने जब आता है, छा जाता है मौन

    सादर

    राकेश

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  4. ओमप्रकाश जी, कमलेश जी, राकेश जी उत्साहवर्धन हेतु आभार। ​


    तिमिर भाग्य का दूर कर सके केवल ॐ प्रकाश

    कभी प्रगट कमलेश बन हुआ साक्षी है आकाश

    रवि-राकेश वही है उसको सलिल नवाता शीश

    मस्तक रेख रच-बाँचे वह, जग कहता है ईश

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  5. मस्तक की रेखाएँ
    कहें कौन बाँचेगा? आ. सलिल जी नमस्कार

    बहुत सुन्दर नवगीत।

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