चित्र पर कविता
नयन में शत सपने सुकुमार
अधर का गीत करे श्रृंगार
दंत शोभित ज्यों मुक्तामाल
केश नागिन नर्तित बलिहार
भौंह ज्यों प्रत्यंचा ली तान
दृष्टि पत्थर में फूंके जान
नासिका ऊँची रहे सदैव
भाल का किंचित घटे न मान
सुराही कंठ बोल अनमोल
कर्ण में मिसरी सी दे घोल
कपोलों पर गुलाब खिल लाल
रहे नपनों-सपनों को तोल
Sanjiv verma 'Salil'
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जवाब देंहटाएंआ० सलिल जी
सुन्दर, बेहतरीन श्रंगार की रचना। बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह
achal verma achalkumar44@yahoo.com [ekavita]
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर यह काव्य सामने ला देता छवि एक
जो लेता सबका ही मन मोह दिखा कर नैनों को नेक |....अचल