दोहा सलिला:
संजीव
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संजीव
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शशि की स्नेहिल ज्योत्सना, करे प्राण संचार
सलिल-तरंगें निनादित, हो ज्योतित जलधार
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पूनम शीतल चाँदनी, ले जग का मन मोह
नहीं अमावस सह सके, श्यामल हो कर द्रोह
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नाज़ उठाने की नहीं, सीमा कोई मीत
नभ सी अपरम्पार है, मानव मन की प्रीत
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अधिक न कम देना मुझे, सोना हे दातार!
बस उतना ही चाहिए, चले जगत व्यापार
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करे गगन को सुशोभित, गहन तिमिर के जूझ
नत रवीन्द्र सम्मुख जगत, थको न श्रम हो बूझ
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पायल की झंकार सुन, मन मयूर ले नाच
समय पुरोहित हँस रहे, प्रणय पत्रिका बाँच
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प्रात रवि किरण देख उठ, जग जाएगा भाग
कीर्ति-माल मुस्कान से, घर हो पुण्य प्रयाग
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कल 27/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंysh dhanyawad.
जवाब देंहटाएंयश न सुमन का न्यून है, महका सु-मन कपूर
जवाब देंहटाएंशूल भूल के चुभें तो, सलिल न करना दूर