रविवार, 13 जुलाई 2014

geet: kaha suna... sanjiv

गीत:
हम मिले… 
संजीव
*
हम मिले बिछुड़ने को   
कहा-सुना माफ़ करो...
*
पल भर ही साथ रहे
हाथों में हाथ रहे.
फूल शूल धूल लिये-
पग-तल में पाथ रहे
गिरे, उठे, सँभल बढ़े 
उन्नत माथ रहे 
गैरों से चाहो क्योँ? 
खुद ही इन्साफ करो... 
*
दूर देश से आया
दूर देश में आया
अपनों सा अपनापन 
औरों में है पाया
क्षर ने अक्षर पूजा 
अक्षर ने क्षर गाया 
का खा गा, ए बी सी 
सीन अलिफ काफ़ करो… 
*
नर्मदा मचलती है 
गोमती सिहरती है 
बाँहों में बाँह लिये 
चाह जब ठिठकती है  
डाह तब फिसलती है 
वाह तब सँभलती है 
लहर-लहर घहर-घहर 
कहे नदी साफ़ करो...

4 टिप्‍पणियां:

  1. ksantosh_45@yahoo.co.in [ekavita]

    आ० सलिल जी
    सुंदर गीत के लिये बधाई..
    सन्तोष कुमार सिंह

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई, आदरणीय संजीव जी।

    विजय निकोर

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  3. Kusum Vir kusumvir@gmail.com [ekavita]


    भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति, आचार्य जी l
    सादर,
    कुसुम

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