मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

chhand salila: visheshika chhand - sanjiv

छंद सलिला:
विशेषिका छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति महादैशिक , प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत तीन लघु लघु  गुरु (सगण)।

लक्षण छंद:

'विशेषिका' कलाएँ बीस संग रहे 
विशेष भावनाएँ कह दे बिन कहे
कमल ज्यों नर्मदा में हँस भ्रमण करे
'सलिल' चरण के अंत में सगण रहे

उदाहरण:
१. नेता जी! सीखो जनसेवा, सुधरो
   रिश्वत लेना छोडो अब तो ससुरों!
   जनगण ने देखे मत तोड़ो सपने
   मानो कानून सभी मानक अपने
 
२. कान्हा रणछोड़ न जा बज मुरलिया
    राधा का काँप रहा धड़कता जिया
    निष्ठुर शुक मैना को छोड़ उड़ रहा
    यमुना की लहरों का रंग उड़ रहा
    नीलाम्बर मौन है, कदम्ब सिसकता
    पीताम्बर अनकहनी कहे ठिठकता
    समय महाबली नाच नचा हँस रहा
    नटवर हो विवश काल-जाल फँस रहा
   
 ३. बंदर मामा पहन पजामा सजते
     मामी जी पर रोब ज़माने लगते
     चूहा देखा उठकर भागे घबरा
     मामी मन ही मन मुस्काईं इतरा
   
      *********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

6 टिप्‍पणियां:

  1. Sitaram Chandawarkar

    आदरणीय ’सलिल’ जी,
    आप के छन्द ज्ञान को नमन.
    सद्य प्रस्तुत छंद के उदाहरण २ की द्वितिय पंक्ति के अंत में सगण नहीं है।’...ता जिया’ = रगण (गुरु, लघु, गुरु) आया है। शायद आप इसे ठीक करना चाहेंगे।
    स्स्नेह
    सीताराम चंदावरकर

    जवाब देंहटाएं
  2. Sitaram Chandawarkar

    आदरणीय ’सलिल’ जी,
    आप के छन्द ज्ञान को नमन.
    सद्य प्रस्तुत छंद के उदाहरण २ की द्वितिय पंक्ति के अंत में सगण नहीं है।’...ता जिया’ = रगण (गुरु, लघु, गुरु) आया है। शायद आप इसे ठीक करना चाहेंगे।
    स्स्नेह
    सीताराम चंदावरकर

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  3. Sitaram Chandawarkar

    आदरणीय ’सलिल’ जी,
    आप के छन्द ज्ञान को नमन.
    सद्य प्रस्तुत छंद के उदाहरण २ की द्वितिय पंक्ति के अंत में सगण नहीं है।’...ता जिया’ = रगण (गुरु, लघु, गुरु) आया है। शायद आप इसे ठीक करना चाहेंगे।
    स्स्नेह
    सीताराम चंदावरकर

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  4. आदरणीय
    वन्दे भारत-भारती
    आपकी सजगता को नमन, त्रुटि हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ.
    उदाहरण २ द्वितीय पंक्ति में 'धड़कता जिया' के स्थान पर 'धड़ककर जिया' पढ़ने की कृपा कीजिए।

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  5. Rakesh Khandelwal ekavita


    आदरणीय

    छन्दों की इस देव सलिला में भाविं की किश्ती पर बिठाकर भ्रमण करवाने हेतु अनन्य धन्यवाद.

    सादर

    राकेश

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  6. गीत सम्राट को प्रयास यदि रुचा
    अनुष्ठान सारस्वत सार्थक हुआ

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