छंद सलिला:
प्रतिभा छंद
संजीव
*
लक्षण: मात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणारंभ लघु, चरणांत गुरु
लक्षण छंद:
लघु अारंभ सुअंत बड़ा
प्रतिभा ले मनु हुआ खड़ा
कण-कण से संसार गढ़ा
पथ पर पग-पग 'सलिल' बढ़ा
उदाहरण:
१. प्रतिभा की राह न रोको
बढ़ते पग बढ़ें, न टोको
लघु कोशिश अंत बड़ा हो
निज पग पर व्यक्ति खड़ा हो
प्रतिभा छंद
संजीव
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लक्षण: मात्रिक छंद, जाति मानव, प्रति चरण मात्रा १४ मात्रा, चरणारंभ लघु, चरणांत गुरु
लक्षण छंद:
लघु अारंभ सुअंत बड़ा
प्रतिभा ले मनु हुआ खड़ा
कण-कण से संसार गढ़ा
पथ पर पग-पग 'सलिल' बढ़ा
उदाहरण:
१. प्रतिभा की राह न रोको
बढ़ते पग बढ़ें, न टोको
लघु कोशिश अंत बड़ा हो
निज पग पर व्यक्ति खड़ा हो
२. हमारी आन है हिंदी
हमारी शान है हिंदी
बनेगी विश्व भाषा भी
हमारी जान है हिंदी
३. प्रखर है सूर्य नित श्रम का
मुखर विश्वास निज मन का
प्रयासों का लिए मनका
सतत फेरे- बढ़े तिनका
*********************************************
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
हमारी शान है हिंदी
बनेगी विश्व भाषा भी
हमारी जान है हिंदी
३. प्रखर है सूर्य नित श्रम का
मुखर विश्वास निज मन का
प्रयासों का लिए मनका
सतत फेरे- बढ़े तिनका
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रतिभा, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, मानव, माली, माया, माला, ऋद्धि, राजीव, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर छंद, आ० सलिल जी l
बधाई l
सादर,
कुसुम
sn Sharma द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआ० आचार्य जी ,
बहुत दीनो बाद मंच पर लौटा पा कर मन खुश हुआ ।
आपके बिना सूना लागता है ।
नये छंदों की श्रृंखला में अनेक ऐसे छंद भी पाये
जिनका प्रयोग ठोकिया पर उनके नाम से अपरिचित्त था ।
आज का प्रतिभा छंद भी ऊनमेँ से है ।
कमल
कुसुम जी, कमल जी
जवाब देंहटाएंआप दोनों का आभार।
स्वनामधन्य प्रसाद, दद्दा, दादा, पंत, निराला, महादेवी, हरिऔध, नवीन आदि तथा अन्य स्वनामधन्य कवियों ने छंदों का प्रयोग यथावसर किया है. उन्हें पढ़कर हम अनजाने ही इन्हें अपनी रचनाओं में ले आते हैं किन्तु विधान न जानने के कारण शुद्धता नहीं होती। इस प्रयास का उद्देश्य विधान को सीखना ही है. मानस में अनेक छंद हैं किन्तु चौपाई तथा दोहा को छोड़कर शेष छंदों को छंद मात्र कहा गया है. यदि हर छंद का नाम दिया गया होता तो यह परंपरा हो जाती और तब ये छंद हमें अपरिचित नहीं लगते।
Amitabh Tripathi द्वारा yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
एक नए छंद से परिचय कराने के लिए आभार!
सादर
अमित
बंधुवर। आपका स्वागत है. कृपया, इन छंदों को देखते रहिये। त्रुटि होने पर अवश्य बतायें।
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