बुधवार, 6 नवंबर 2013

doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:

संजीव

जड़ पकड़े चेतन तजे, हो खयाल या माल
खलिश तभी आनंद हो, झूमे दे-दे ताल

facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

8 टिप्‍पणियां:

  1. Pramendra pratap singh

    kyaa baat kahi aapne...

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  2. Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.comबुधवार, नवंबर 06, 2013 11:07:00 pm

    Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.com


    सलिल जी,

    मैंने इसे ऐसे पढ़ा--

    जड़ पकड़े चेतन, तजे हो खयाल या माल

    खलिश तभी आनंद हो, झूमे दे-दे ताल.


    --ख़लिश

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  3. Lalit Walia

    See, how important punctuation is in poetry ?
    Just a right place of coma made a difference.

    Good one 'Khalish Ji.

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  4. Lalit Walia

    As a matter of fact this doesn't need coma any where. These kind of lines are understood when read in straight flow. (Its a kind of metaphor).

    जड़ पकड़े चेतन तजे हो खयाल या माल
    खलिश तभी आनंद हो झूमे दे-दे ताल.

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  5. Lalit

    >>> (Its a kind of metaphor)

    Sorry, not a metaphor,
    It's a kind of an Idiom I meant.

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  6. Lalit Walia

    दरअसल इतनी दलीलें देने के बाद भी मुझे तसल्ली नहीं हुई । जब दूसरों के ग़लत वक्तव्य बर्दाश्त नहीं होते, तो ख़ुद ही कैसे गलत कह दूं ?
    वास्तव में अच्छी तरह सोचने के बाद ये निष्कर्ष निकला ।
    जड़ पकड़े चेतन, तजे हो खयाल या माल (पंक्ति का सही अर्थ निकालने की दृष्टि से आप सही हैं ।
    खलिश तभी आनंद हो, झूमे दे-दे ताल.

    जड़ पकड़े चेतन तजे, हो खयाल या माल (दोहे की लय क़ायम रखने की दृष्टि से संजीव जी की जगह भी ठीक है)
    खलिश तभी आनंद हो, झूमे दे-दे ताल.


    पर ये दोहा मुहावरे जैसा होने के कारण कोमे की कहीं भी ज़रुरत नही है ।

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  7. Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.comबुधवार, नवंबर 06, 2013 11:13:00 pm

    Dr.M.C. Gupta द्वारा yahoogroups.com
    संदर्भ--


    जड़ पकड़े चेतन, तजे हो खयाल या माल (पंक्ति का सही अर्थ निकालने की दृष्टि से आप सही हैं ।
    खलिश तभी आनंद हो, झूमे दे-दे ताल.

    जड़ पकड़े चेतन तजे, हो खयाल या माल (दोहे की लय क़ायम रखने की दृष्टि से संजीव जी की जगह भी ठीक है)
    खलिश तभी आनंद हो, झूमे दे-दे ताल.


    ***

    अब विकट समस्या / बेतल पहेली यह है कि चूँकि दोनों का अर्थ बिल्कुल विपरीत है, अत: मूल लेखक का मंतव्य क्या था?



    वैसे मेरा सुझाव यह है कि इस मंतव्य को उसी प्रकार परदे में रहने दिया जाए जैसा हसरत साहिब ने सुझाया था-- "पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ"

    http://www.youtube.com/watch?v=gDUry5XwX5w&noredirect=1


    --बेहतर हो यह प्रकरण यहीं समाप्त कर दिया जाए.

    --ख़लिश

    ========

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