रविवार, 10 नवंबर 2013

chhand salila: kakubh / kukabh

: छंद सलिला :
ककुभ / कुकुभ
संजीव
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(छंद विधान: १६ - १४, पदांत में २ गुरु)
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यति रख सोलह-चौदह पर कवि, दो गुरु आखिर में भाया
ककुभ छंद मात्रात्मक द्विपदिक, नाम छंद ने शुभ पाया
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देश-भक्ति की दिव्य विरासत, भूले मौज करें नेता
बीच धार मल्लाह छेदकर, नौका खुदी डुबा देता
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आशिको-माशूक के किस्से, सुन-सुनाते उमर बीती.
श्वास मटकी गह नहीं पायी, गिरी चटकी सिसक रीती.
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जीवन पथ पर चलते जाना, तब ही मंज़िल मिल पाये
फूलों जैसे खिलते जाना, तब ही तितली मँडराये
हो संजीव सलिल निर्मल बह, जग की तृष्णा हर पाये
शत-शत दीप जलें जब मिलकर, तब दीवाली मन पाये
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(ककुभ = वीणा का मुड़ा हुआ भाग, अर्जुन का वृक्ष)

Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in/
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

3 टिप्‍पणियां:

  1. Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com

    आदरणीय आचार्य जी,
    यथार्थपरक सारगर्भित छंद l
    सादर,
    कुसुम वीर

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  2. sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

    आ० आचार्य जी ,
    नए छंद ज्ञान के लिए आपका आभार ।
    सादर
    कमल

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  3. ​माननीय कमल जी, कुसुम जी
    आपकी रूचि हेतु आभार।
    हिंदी का छंद भण्डार अतुल्य है. यह सम्पदा संस्कृत को छोड़कर अन्य किसी भाषा के पास नहीं है. इन्हें साधने में समय लगता है किन्तु ये काव्य रचना के प्रभाव में वृद्धि भी करते हैं.

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