एक प्रयोग
दोहे पर कुंडली धनञ्जय सिंह - संजीव
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सूरज दस्तक दे रहा खोलो मन के द्वार
शुभ स्वर्णिम दिनमान का ग्रहण करो उपहार
ग्रहण करो उपहार स्वेद नर्मदा नहाकरदर्द समेटो विहँस जगत में ख़ुशी लुटाकर
'सलिल' बहे अनवरत करे पत्थर को भी रज
अन्धकार हो सघन निकलता तब ही सूरज
सूरज दस्तक दे रहा खोलो मन के द्वार
जवाब देंहटाएंशुभ स्वर्णिम दिनमान का ग्रहण करो उपहार
(नर्वदा नदी नत नमन नमस्कार )