शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

doha/kundali: rajesh prabhakar-sanjiv

नया प्रयोग
दोहे पर कुंडली 
 
दोह राजेश प्रभाकर रोला संजीव
स्याही से अभिमान का, कतरा -कतरा छान !
मिथक तोड़ दिल जोडती, कलम बनें पहचान।
कलम बने पहचान रचे इतिहास नया ही
बिना योग्यता आरक्षण की रहे मनाही
सलिल क्लान्ति हर सके तीर जब आये राही
सूरज नया उगाये बने अक्षर जब स्याही

2 टिप्‍पणियां:

  1. Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com

    आदरणीय आचार्य जी,
    वाह !
    अति सुन्दर l
    सामयिक समस्या का अति सुन्दर समाधान किया है आपने इस कुंडली में l
    अशेष सराहना के साथ,
    सादर,
    कुसुम वीर

    जवाब देंहटाएं
  2. आचार्य जी ,
    अभिनव प्रयोग के लिये साधुवाद
    सादर कमल

    जवाब देंहटाएं