सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

doha-kundali : dr. gopal rajgopal-sanjiv

दोहे पर कुंडली:
दोहा : डॉ. गोपाल राजगोपाल, रोला: संजीव 'सलिल'
“क्यों कातिल की खोज में,दुबले होते आप
करली होगी खुदकुशी , मैंने ही चुपचाप”
मैंने ही चुपचाप देख करतूत संत की
भोग बना शुरुआत संत के पतित अंत की
कहे 'सलिल' गो पाल पलते कान्हा थे ज्यों
लालू और मुलायम भूले गोपालन क्यों?
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

7 टिप्‍पणियां:

  1. Kusum Vir द्वारा yahoogroups.co
    आदरणीय आचार्य जी,

    वाह !
    क्या बात !
    अति सुन्दर !

    कुसुम वीर

    जवाब देंहटाएं
  2. sn Sharma द्वारा yahoogroups.comसोमवार, अक्टूबर 14, 2013 7:10:00 pm

    sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

    आ० आचार्य जी,
    दोहे पर कुंडली बहुत जंची । पांचवीं पंक्ति में शायद
    पलते के स्थान पर पालते होगा जो टंकण के कारण रह
    गया ।

    सादर
    कमल

    जवाब देंहटाएं
  3. sanjiv verma salil

    7:09 pm (0 मिनट पहले)

    ekavita
    कमल जी, कुसुम जी
    आपका आभार शत-शत.
    टंकण त्रुटि हेतु खेद है.

    Sanjiv verma 'Salil'
    salil.sanjiv@gmail.com
    http://divyanarmada.blogspot.in
    facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

    जवाब देंहटाएं
  4. Kusum Vir
    आचार्य जी,
    आपका यह नया प्रयोग अति सुन्दर, रुचिकर और सार्थक है l
    बहुत बधाई और अशेष सराहना के साथ,

    जवाब देंहटाएं
  5. Kusum Vir
    आचार्य जी,
    आपका यह नया प्रयोग अति सुन्दर, रुचिकर और सार्थक है l
    बहुत बधाई और अशेष सराहना के साथ,

    जवाब देंहटाएं