मंगलवार, 10 सितंबर 2013

doha salila: doha-doha yamakmay sanjiv

दोहा सलिला:
दोहा-दोहा यमकमय
संजीव
*
चरखा तेरी विरासत, ले चर खा तू देश
किस्सा जल्दी ख़त्म कर, रहे न कुछ भी शेष
*
नट से करतब देखकर, राधा पूछे मौन
नट मत, नटवर! नट कहाँ?, कसे बता कब कौन??
*
देख-देखकर शकुन तला, गुझिया-पापड़ आज
शकुनतला-दुष्यंत ने, हुआ प्रेम का राज
*
पल कर, पल भर भूल मत, पालक का अहसान
पालक सम हरियाएगा, प्रभु का पा वरदान
*
नीम-हकीम न नीम सम, दे पाते आरोग्य
ज्यों अयोग्य में योग्य है, किन्तु न सचमुच योग्य
*
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

5 टिप्‍पणियां:

  1. Ram Gautam

    आ. आचार्य 'सलिल' जी,

    सामयिक और सुन्दर दोहे, अलंकारों के प्रयोग के साथ अच्छे लगे |
    आपको नमन और साधुवाद !!!!
    सादर- गौतम

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  2. dks poet

    आदरणीय सलिल जी,
    अलंकारों में आप सिद्धहस्त हैं। बधाई स्वीकारें।
    सादर
    धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

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  3. Mahipal Tomar via yahoogroups.com

    यमकमय-दोहे क्रमांक 1 ,4 , 5 समझ में आये ,तीजे चौथे हम चकराए ,
    पहिला सब दोहों का राजा , बजा रहा है सब का बाजा । ढेर बधाई , संजीव जी ,
    सादर ,
    महिपाल

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  4. Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
    mcdewedy@gmail.com


    बधाई सलिल जी.
    सुंदर विश्लेषण एवँ संस्लेषण.
    महेश चंद्र द्विवेदी

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  5. sn Sharma via yahoogroups.com

    आ० आचार्य जी ,
    सुन्दर यमक का प्रयोग । लेखनी को नमन

    सादर कमल

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