लघुकथा:
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सन्नाटा
संजीव
*
*
=
'लल्लन! एक बात मानोगी?
-- ''का?''
= 'मुन्नू खों गोद ले लेओ'
-- ''सुबे-सुबे काये हँसी-ठठ्ठा करत हो? तुम ठैरे पक्के बामन… हम छू भी जाएँ तो सपरना परे…''
-- 'सो तो है मगर मुन्नू को नौकरी नई मिल रई,जितै जाउत है उतै आरच्छन… एई सें सोची…'
दोनों चुप हो गये, पसरा रह गया सन्नाटा।
*
Sanjiv verma 'Salil'*
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जवाब देंहटाएंवाह वाह बहुत ख़ूब बधाई
एक झकझोरने वाली लघु कथा
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जवाब देंहटाएंयह हुई समाज में पैनी नजर के साथ साहित्यिक की उपस्थिति - वाह सलिल जी ,बधाई ।
सादर ,शुभेच्छु ,
महिपाल
achal verma
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य जी,
आज के हालात पर आता है रोना
अश्रु भी ठिठके रहे नयनों के कोना
आप की है दूर दृष्टि पड गई जब
तब ये चमके बन के इन नयनों में सोना
Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसत्य वचन
महेशचंद्र द्विवेदी