दोहा सलिल:
सामयिक दोहे
संजीव
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
सामयिक दोहे
संजीव
*
नंगों से डरता खुदा, शायद सच यह बात
माफ़ हमेशा ही हुआ, उनका हर आघात
जो करता प्रतिरोध, हम देखें उसका दोष
किन्तु बढ़े अन्याय का इससे हर दिन कोष
ओबैसी आतंक का, लिखे नित्य अध्याय
अनदेखी से बढ़ हुए, देश-द्रोह-पर्याय
आम आदमी कर रहा, मोदी पर विश्वास
मुझको जा गुजरात में, हुआ यही अहसास
मुस्लिम भाई भी रहे, दे मोदी का साथ
स्वार्थ-सियासत का हुआ, लेकिन नीचा माथ
असफल होता तंत्र तो, मुखिया जिम्मेवार
श्री अनूप का तर्क यह, सत्य हमें स्वीकार
मात्र निवेदन यह- नहीं दोष करे जब दूर
तब भी फांसी दें उसे, जन-गण होकर सूर
जन-गण ने यदि माफ़ कर, मान लिया निर्दोष
क्यों न सत्य स्वीकार यह, हम न रहें खामोश
ओजस्वी नेतृत्व की, बहुत जरूरत आज
जोश-होश का संतुलन, पाए सर पर ताज
तुष्टिकरण की नीति से, है खतरे में देश
मोदी सा नेतृत्व ही, सक्षम रहे हमेश Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
Dr.M.C. Gupta
जवाब देंहटाएंTo: eChintan
संदर्भ--
जन-गण ने यदि माफ़ कर, मान लिया निर्दोष
क्यों न सत्य स्वीकार यह, हम न रहें खामोश
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उलझन का रूप कुछ ऐसा है--
१--जनता का निर्णय हमें (लोक तंत्र में ) मान्य नहीं, हम तो अदालत का सम्मान करते हैं.
२--अदालत में केस अभी चल रहे हैं, फ़ैसला आया नहीं.
३--ऐसे में हम तो अमरीका की बात मानेंगे कि मोदी को वीसा नहीं देंगे क्योंकि वह हत्यारा है. आखिर, क्यों न बात मानें दुनिया के सरगना की? (उसीके डालरों पर तो हम पलते हैं जिनके लिए अपना जान से भी प्यारा देश छोड़ कर आए थे. भला कोई उस पत्तल में भी छेद करता है जिसमें खुद खाता हो?).
--ख़लिश
achal verma
जवाब देंहटाएंआ. आचार्य जी ,
ध्येय यही जो रहे हमारा
विजयी रहे तिरन्गा प्यारा
तो हो जाय वारा न्यारा
इसके लिए बस एक रास्ता
सोचे देश एक हो सारा
जिसे न मोदी भाये आज
वो जयचन्द सा है बेचारा
एक अकेला नेता जिसके
डर से काँपेगा जग सारा ॥ .
हम न आये थे बहुत पैसे कमाने के लिए
हम तो आए थे ये किस्मत आजमाने के लिए
हमने पाया देश ये हमपर भरोसा कर रहा
भले हों हम दूर पर दूरी घटाने के लिए
हमने दूरी भी घटाई पाया है सम्मान भी
याद करते हैं सभी है देश हिन्दुस्तान भी
वरना ये बस जानते थे पाकिस्तान को अपना यार
जिसने कर रक्खा है इनके नाक में दम करके वार ॥
Anoop Bhargava
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल जी,
आप के दोहे बहुत अच्छे लगे लेकिन क्यों कि कविता भाषा ही संकेतों की है और बात स्पष्ट रूप से नहीं कही जाती , इसलिये तर्क के लिये शायद उपयुक्त माध्यम नहीं है । कविता में एक ही पंक्ति के कई अर्थ हो सकते हैं और सभी अर्थ अपने आप में सही हो सकते हैं । यहां आप की कविता का दूसरा अर्थ (जो आप ने सोचा नही हो या कहना नहीं चाह रहे हों) समझ कर अर्थ का अनर्थ नहीं करना चाहता ।
दूसरी बात यह है कि दोहों में समस्या और उस का अंतिम समाधान ही रख दिया जाये तो कुछ कहने के लिये वैसे भी कुछ नहीं बच जाता ।
ज़रूरी नहीं है लेकिन ईचिन्तन पर यदि चिन्तन गद्य में ही हो अच्छा रहेगा ।
सादर
अनूप
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएं// ओजस्वी नेतृत्व की, बहुत जरूरत आज
जोश-होश का संतुलन, पाए सर पर ताज
तुष्टिकरण की नीति से, है खतरे में देश
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आपने सत्य कहा आचार्य जी,
मैं आपसे पूर्णत: सहमत हूँ l
सादर,
कुसुम वीर