मुक्तिका:
क्या बतायें?...
संजीव
*
फासले नजदीकियों के दरमियाँ हैं।
क्या बतायें हम कि क्या मजबूरियाँ है?
फूल तनहा शूल के घर महफिलें हैं,
तितलियाँ हैं या हसीं मगरूरियाँ हैं..
नुमाइंदे बोटियाँ खाकर परेशां.
वोटरों को चाँद दिखता रोटियाँ हैं..
फास्ट, रोजा, व्रत करो कब कहा उसने?
छलावा करते रहे पंडित-मियाँ हैं..
खेल मैदां पर न होता है तमाशा
खिलाड़ी छिप चला करते गोटियाँ हैं..
हाय गर्मी! प्यास है, पानी नहीं है.
प्रशासन मुस्तैद, मँहगी टोटियाँ हैं..
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क्या बतायें?...
संजीव
*
फासले नजदीकियों के दरमियाँ हैं।
क्या बतायें हम कि क्या मजबूरियाँ है?
फूल तनहा शूल के घर महफिलें हैं,
तितलियाँ हैं या हसीं मगरूरियाँ हैं..
नुमाइंदे बोटियाँ खाकर परेशां.
वोटरों को चाँद दिखता रोटियाँ हैं..
फास्ट, रोजा, व्रत करो कब कहा उसने?
छलावा करते रहे पंडित-मियाँ हैं..
खेल मैदां पर न होता है तमाशा
खिलाड़ी छिप चला करते गोटियाँ हैं..
हाय गर्मी! प्यास है, पानी नहीं है.
प्रशासन मुस्तैद, मँहगी टोटियाँ हैं..
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pran sharma
जवाब देंहटाएं3:25 PM (3 hours ago)
to me
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Priy Sanjeev ji ,
Aapkee muktika abhee - abhee kavyadhara mein padhee hai .
uskee bahr hai - 212 , 221 , 222 , 122 ( sis , ssi , sss , iss ) . ekaadh sher
hee bahr mein hai . shesh ashaar betarteeb hain . kripya dekhiyega .
Asha hai ki aap anyatha nahin lenge .
Shubh kamnaaon ke saath ,
pran
दादा
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
आपका सुझाव और निर्देश सर-आँखों पर। मुक्तिक की रचना हिंदी मात्रा गणन के आधार पर हर पद में २ १ मात्रा लेकर की है। आपके निर्देशानुसार इसे बहर में लाने से सौंदर्य में वृद्धि ही होगी। आपका आभारी हूँ कि आपने मार्ग दर्शन किया। निर्देश का पालन करूंगा। ह्रदय से धन्यवाद।
Shriprakash Shukla via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
एक श्रेष्ठ रचना। अति मनभावन लगी। बधाई।
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
Dr.M.C. Gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसलिल जी,
बहुत सुंदर है--
फासले नजदीकियों के दरमियाँ हैं।
क्या बतायें हम कि क्या मजबूरियाँ है?
फूल तनहा शूल के घर महफिलें हैं,
तितलियाँ हैं या हसीं मगरूरियाँ हैं..
खेल मैदां पर न होता है तमाशा
खिलाड़ी छिप चला करते गोटियाँ हैं..
मतले से याद आ गया--
मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियाँ हैं
ज़रा ठहरो सनम मजबूरियाँ हैं.
--ख़लिश
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंबहुत सामयिक, सटीक रचना, आचार्य जी,
कुसुम वीर
achal verma
जवाब देंहटाएंनुमाइंदे बोटियाँ खाकर परेशां.
वोटरों को चाँद दिखता रोटियाँ हैं..
आदरणीय आचार्य सलिल ,
चाँद से अगर आपका अर्थ मेरे सर का चन्दूल है
तो मेरी परेशानी बढ गई :
डर लगेगा वो्ट देने मे हमेशा
खा न ले कोई मेरा सर है अन्देशा
मेरे सर पर भी बडा सा चाँद है एक
कहीं तवा पर सेंके ना जिसका है पेशा ॥....अचल.....
(It is all in a joke , no offence intended.)
Shriprakash Shukla via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय अचल जी,
Grass never grows on busy streets.
आपने दिमाग इस्तेमाल किया है इस से चाँद पर चंदूल पा सके और धन भी मिला ही होगा । आप भाग्यशाली हैं ।
सादर प्रणाम सहित
श्रीप्रकाश शुक्ल
वात से हो परेशां, चेहरा तवा सा
जवाब देंहटाएंचाँद सी चन्दूल, चमचम सुमुखियाँ हैं।
खा रहे सर रोज, कवितायें पठाकर-
दिल-दिमागी जंग, धन कवि-पंक्तियाँ हैं।
अचल हो श्री, शुक्ल श्यामा-श्याम भी तब
है न बैसाखी मगर बैसाखियाँ है।
सलिल जी,
जवाब देंहटाएंएक नये ढंग की आपने गजल कही है प्रयोग कामयाब लगता है
जरा दूसरे शेर का काफिया समझ में नहीं आ रहा
सादर ,
सुरेन्द्र
हौसला अफजाई का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंफूल तनहा शूल के घर महफिलें हैं,
तितलियाँ हैं या हसीं मगरूरियाँ हैं..
'इयाँ' तथा 'हैं' तुकांत-पदांत लेने की कोशिश की है. 'मगरूर' का अप्रचलित शब्दरूप 'मगरूरियाँ' प्रयोग किया गया है. मजबूर-मजबूरियाँ की तरह मगरूर-मगरूरियाँ. मुझे उर्दू व्याकरण की समझ नहीं है. उस नजरिये से गलत हो तो बताएं, सुधारने या खारिज करने में कोई उज्र नहीं है।
akpathak317@yahoo.co.in via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंइस शे’र को अगर ऐसे पढ़ें तो कैसा रहेगा
फूल तन्हा ,शूल के घर महफ़िलें
तितलियों को बेबसी ,परेशानियां हैं
वैसे इस ग़ज़ल (मुक्तिका)में कहीं कहीं बह्र टूट रही है
सादर
आनन्द पाठक,जयपुर
Surender Bhutani
जवाब देंहटाएंSarkar,
Ye ghalt hi hai. Ise kharij kar deN to behtar hoga.
vaise bhi ye Arabi aur Farsi lafz hai.
बंदापरवर! हुकुम सर-आँखों पर
जवाब देंहटाएंआ. शुक्ल जी ,
जवाब देंहटाएंदिमाग इतना इस्तेमाल कर दिया है कि अब कुछ बचा ही नहीं
और धन जितना था उसपर रहीम की आँख लग गई है :
पानी बाढे नाव में घर में बाढे दाम
दोऊ हाथ उलीचिए यही सयानो काम.....
अतएव अब सयाना बनकर उलीचना पड रहा है, उनकी नजर से बचने को॥
dks poet
जवाब देंहटाएंआदरणीय सलिल
शानदार मुक्तिका है। दाद कुबूलें।
चाँद एकवचन है ऐसे में रोटियाँ ठीक है क्या? गोया यूँ न कर दें "वोटरों को चाँद सूरज रोटियाँ हैं"
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’