गीत :
फोड़ रहा है काल फटाके...
संजीव
*
झाँक झरोखे से वह ताके,
या नव चित्र अबोले आँके...
*
सांध्य-सुंदरी दुल्हन नवेली,
ठुमक-ठुमक पग धरे अकेली।
निशा-नाथ को निकट देखकर-
झट भागी खो धीर सहेली।
तारागण बाराती नाचे
पियें सुधा रस मिलकर बाँके...
*

झींगुर बजा रहे शहनाई,
तबला ठोंकें दादुर भाई।
ध्रुव तारे को दिखा रही है-
उत्तर में पुरवैया दाई।
दें-लें सात वचन, मत नाके-
कहाँ पादुका ऊषा ताके...
*
धरा धरा ने अब तक धीरज,
रश्मि बहू ले आया सूरज।
अगवानी करती गौरैया-
सलिल-धार उपहारे नीरज।
चित्र गुप्त, चुप सुनो ठहाके-
फोड़ रहा है काल फटाके...
*
Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.
Ram Gautam
जवाब देंहटाएंआचार्य सलिल जी,
आपका गीत सुंदर लगा, खासकर-
झींगुर बजा रहे शहनाई,
तबला ठोंकें दादुर भाई।
आपको और आपकी सोच को नमन |
सादर- गौतम
achal verma
जवाब देंहटाएंअनुपम छटा प्रकृति की देखी
मैने सलिल प्रवाह में
सुधापान कर रहा हो कोई
जैसे मनन की राह में ॥.....achal .....
Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंSundar varnan. badhai Salil ji.
Mahesh Chandra Dwivedy
deepti gupta via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंलगता है कि महादेवी जी आपकी लेखनी में उतर आई हैं ...................बहुत उत्कृष्ट कविता रची है !
बधाई !
दीप्ति
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआचार्य जी,
अद्भुत l
वाह ! क्या बात ! क्या बात !
कुसुम वीर
vijay3@comcast.net via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंरचना बहुत अच्छी लगी। बधाई।
विजय
Shishir Sarabhai <shishirsarabhai@yahoo.com
जवाब देंहटाएंअद्भुत, सुन्दर संजीव जी
सादर,
शिशिर
Indira Pratap via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंसंजीव भाई,
बुआ जी का वरद हस्त सदैव आप के ऊपर रहे, भगवान् ऐसी विरासत सबको नसीब करे| आज तो आपसे रश्क हो रहा है| पर एक बात का ध्यान रखिएगा, खून के रिश्तों से ऊनके चाहने वालों के रिश्ते अधिक प्रगाढ़ होते हैं, फिर हम तो महीयसी महादेवी जी को पूजने वाले लोगों में से हैं|
दिद्दा
shar_j_n
जवाब देंहटाएंआदरणीयआचार्य जी ,
दें-लें सात वचन, मत नाके- मत नाके' का यहाँ क्या अर्थ है आचार्य जी?
कहाँ पादुका ऊषा ताके..'- बहुत ही सुन्दर! एकदम अछूता बिम्ब!
फोड़ रहा है काल फटाके...बहुत सुन्दर!
सादर शार्दुला
शार्दूला जी
जवाब देंहटाएंआपकी पारखी दृष्टि को नमन।
नाकना = उल्लंघन करना, सीमा लांघना, मर्यादा भंग करना।
नाका बंदी = सीमोल्लंघन से रोकना।
नाका = चौकी जहाँ से गुजरने पर एक अंचल से दुसरे अंचल में जाने के लिए कर (चुंगी) देना होता है। इन्हें चुंगी नका कहा जाता है।
bodhisatva kastooriya
जवाब देंहटाएंsuperb
Kusum Vir via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआचार्य जी,
आपकी कल्पना को शत - शत नमन l
लगता है ब्रह्माण्ड में उसकी सबसे दोस्ती है, तभी तो सभी से गुपचुप मिलकर
उनके विभिन्न रंगों की ओढ़नी से कल्पना को कविता में सजीव कर देती है l
असीम सराहना एवं परम आदर के साथ,
कुसुम वीर
Shriprakash Shukla via yahoogroups.com
जवाब देंहटाएंआदरणीय आचार्य जी,
सुन्दर वर्णन अति मनभावन
प्रकृति छटा उत्कृष्ट सुहावन
मिली सहज शब्दों की ढेरी
माँ शारद की कृपा घनेरी
कालजयी कल्पना समेंटे
धन्य भाग, आपसे भेंटे
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल